आनंद कुमार पांडेय
बलिया (उत्तर प्रदेश)
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अपनो की वह हंसी ठिठोली,
कोयल जैसी मीठी बोली।
सबका एक समूह में रहना,
था अपना परिवार हीं गहना।।दिखता वह अधिकार कहाँ है।
मेरा वह परिवार कहाँ है।।भरा पूरा परिवार था अपना,
अब क्यों हुआ आज है सपना।
दादी का शाही फरमान,
दादा का अपना पहचान।।वह चिट्ठी का आना जाना,
पढ़ने सुनने का दौर निराला।
वह क्षण तो अद्भुत लगता था,
प्रेम का था हर-पल उजाला।।सपनों का वह संसार कहाँ है।
मेरा वह परिवार कहाँ है।।मानू सब कुछ बदल गया है,
नया दौर सब निगल गया है।
मोबाइल के दौर में अब तो,
अपना सब कुछ फिसल गया है।।घर परिवार तो नजर न आता,
इंटरनेट से जुड़ गया नाता।
बदल गया इंसान यहाँ का,
अलग-थलग सब हुआ विधाता।।मां बेटे में प्यार कहाँ है,
मेरा वह परिवार कहाँ है।।वह राजा रानी की कहानी,
सुनते थे नानी की जुबानी।
मां का लोरी गाकर सुलाना,
पिता पुत्र का स्नेह पुराना।।कुकड़ू कु और लुकाछिपी,
खेल का था अंदाज निराला।
होली का हुड़दंग नहीं अब,
दिवाली में दीपों की माला।।खुशियों का अंबार कहाँ है।
मेरा वह परिवार कहाँ है।।प्रेम की बहती निर्मल गंगा,
कहीं नहीं था कोई दंगा।
आज समय ऐसा आया कि,
नाच रहा नर हो कर नंगा।।पतझड़ सा संसार लगे यह,
कहीं नहीं बसंत की आभा।
कलम रो रही लिखते-लिखते,
हुआ यहां का दृश्य अचंभा।।“आनंद” अश्रु का धार बहा है।
मेरा वह परिवार कहाँ है।।
परिचय :- आनंद कुमार पांडेय
पिता : स्व. वशिष्ठ मुनि पांडेय
माता : श्रीमती राजकिशोरी देवी
जन्मतिथि : ३०/१०/१९९४
निवासी : जनपद- बलिया (उत्तर प्रदेश)
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।
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