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धेनु हूँ मैं

श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी
लखनऊ (उत्तर प्रदेश)
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माता हूँ मैं क्या माँ भी हूँ
क्या हूँ पूजनीय, वंदनीय भी मैं
या हूँ मनुष्य का साधन मात्र?
जिसे साधते आए तुम,
अपनी आस्था और धर्मों से
कहते हैं भक्ति श्रद्धा का आधार हूँ मैं
फिर भी सड़ती, कटती हूँ मैं,
चित्कार कभी जो सुन पाओ
राहों में तिल तिल मरती हूँ मैं
होता नित्य प्रहार मुझ पर,
घर-घर ने दुत्कारा मुझको
मेरे बच्चे भूखे मरते पर मैं
सबका उपकार करूँ
रहे निरोगी काया जन की,
नित घाव की पीड़ा सहती हूँ
माँ बुढ़ी हो भारी लगती,
निज स्वार्थवश ही प्यारी लगती
जो ना हो आसरा श्रद्धा का
माता से भी प्रेम नहीं
पूजा जप-तप, और दान यज्ञ का
भी कोई मोल नहीं
है प्रश्न मेरे अन्तर्मन का
क्या ऋण मेरा चुकाओगे???
नित-नित सहती इस पीड़ा को
क्या तुम हर पाओगे????
तब उठो-उठो हे जन मानस
माता को अगर बचाना है
मानव सब कुछ भूल गया,
इसको नव पथ दिखाना है
इंसान के भीतर दानव का
अस्तित्व हमें मिटाना है
गौवंश को हक है जीने का
ये हर घर को समझाना है
सिर्फ “गाय” नहीं यह धरती पर
सबसे पवित्र एक प्राणी है
गौ हित मे अगर प्राण गए
सीधे बैकुंठ धाम ही जाना है
सेवा जो ना कर पाए गौ की
केशव के भी ना हो पाओगे !!!

परिचय :- श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी
पति : श्री राकेश कुमार चतुर्वेदी
जन्म : २७ जुलाई १९६५ वाराणसी
शिक्षा : एम. ए., एम.फिल – समाजशास्त्र, पी.जी.डिप्लोमा (मानवाधिकार)
निवासी : लखनऊ (उत्तर प्रदेश)
विशेष : साहित्यिक पुस्तकें पढ़ने के शौक ने लेखन की प्रेरणा दी और विगत ६-७ वर्षों से अपनी रचनाधर्मिता में संलग्न हैं।
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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