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मृत्यु

गिरेन्द्रसिंह भदौरिया “प्राण”
इन्दौर (मध्य प्रदेश) 

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मृत्यु अवस्था है जीवन की।
बस काया के परिवर्तन की।।

मोक्ष मिला तो लय जीवन है,
जन्म मिला तो जय जीवन है।
लोग सोचते हैं बस इतना,
मरने तक का भय जीवन है।।

जब कि अमर की मृत्यु कहाँ है?
इससे सच्चा‌ सत्य कहाँ है ?
कथा नहीं यह व्यथा कथन की,
मृत्यु अवस्था है जीवन की।।

दिखती नहीं अग्नि काठों में,
कहाँ दूध में घी दिखता है?
कहाँ बादलों पर बर्तन हैं,
कौन कहाँ कविता लिखता है।।

यह माया है साथ चलेगी,
हर पड़ाव के बाद मिलेगी।।
रही बात उत्थान पतन की,
मृत्यु अवस्था है जीवन की।।

पल – पल मृत्यु पा रहे तुम हो,
पल – पल जन्म ले रहे तुम हो।
तुममें प्राण उपस्थित पल पल,
जीवन के भी जीवन तुम हो।।

नाहक चिन्ता पाल रहे हो,
दुविधा में क्यों डाल रहे हो।
बातें करते हो दर्शन की,
मृत्यु अवस्था है जीवन की।।

चलो अभी यह चिन्ता छोड़ें,
मस्ती का जीवन भी जी लें।
कुछ पल हँस लें खेलखाल लें,
प्राण – पर्व का जीवन जी लें।।

तनिक बुढ़ापे ने क्या छेड़ा,
और खड़ा कर दिया बखेड़ा।
भूल गए यौवन बचपन की,
मृत्यु अवस्था है जीवन की।।

परिचय :- गिरेन्द्रसिंह भदौरिया “प्राण”
निवासी : इन्दौर (मध्य प्रदेश)
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।


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