विजय गुप्ता
दुर्ग (छत्तीसगढ़)
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कला-कौशल कशीदे कढ़ना, चांद कला जैसे होते।
सुंदर कार्य संवाद बोल, घट-बढ़ कर मुखरित होते।नेक काज पर प्रोत्साहन, स्व स्फूर्त सहज ही बढ़ना
कुछ कमियों की अनदेखी, तिरस्कार मार्ग से हटना
लगते लोग नागवार ऐसे, भाए आंख चुराकर रहना
कुछ अद्भुत उपलब्धि से, जीत की ताली ना बजना
ऐसे लोग बहुत हैं जग में, खुशहाल व्यक्ति पर रोते।
कला-कौशल कशीदे कढ़ना, चांद कला जैसे होते।
सुंदर कार्य संवाद बोल, घट-बढ़ कर मुखरित होते।सम्मान समय पर जो होता, वही कद्र बनती मिसाल
बुद्धि घट में कई छिद्र जड़े, उन्हें पूछना सिर्फ सवाल
स्वभाव ही तो पहचान बने, कर्म योग रोशन मशाल
दूध पी सांप जहर उगले, चारा खा धेनु दूध कमाल।
गाय प्राणदायिनी सभी को, कृष्ण गौ सेवा में खोते।
कला-कौशल कशीदे कढ़ना, चांद कला जैसे होते।
सुंदर कार्य संवाद बोल, घट-बढ़ कर मुखरित होते।अजीबो गरीब फतवों से, बेहिचक राष्ट्र विरोध गहरा
छवि धूमिल की बेचैनी, राष्ट्र विरोध में है अंधा बेहरा
राम चरित मानस पे प्रश्न, बेशर्मी बगावत का चेहरा
राम हमारे नायक आदर्श, संत तुलसी सजाए सेहरा
आदि युग से सनातन धर्म, बीज रामराज्य का बोते।
कला-कौशल कशीदे कढ़ना, चांद कला जैसे होते।
सुंदर कार्य संवाद बोल, घट-बढ़ कर मुखरित होते।हर घड़ी नक्षत्रों के मेले में, दिशा दशा बदलता रूप
समय पटरी पर साहस से, चलता रहे जो छांव-धूप
स्थितियों में ढलना कभी, या ढालो अपने अनुरूप
करें सदा नजर अंदाज, चालाक अड़े-खड़े बहुरूप
सूर्यवंश देश के हंगामी, सूर्योदय अवसर पर सोते।
कला-कौशल कशीदे कढ़ना, चांद कला जैसे होते।
सुंदर कार्य संवाद बोल, घट-बढ़ कर मुखरित होते।
परिचय :- विजय कुमार गुप्ता
जन्म : १२ मई १९५६
निवासी : दुर्ग छत्तीसगढ़
उद्योगपति : १९७८ से विजय इंडस्ट्रीज दुर्ग
साहित्य रुचि : १९९७ से काव्य लेखन, तत्कालीन प्रधान मंत्री अटल जी द्वारा प्रशंसा पत्र
काव्य संग्रह प्रकाशन : १ करवट लेता समय २०१६ में, २ वक़्त दरकता है २०१८
राष्ट्रीय प्रशिक्षक : (व्यक्तित्व विकास) अंतराष्ट्रीय जेसीस १९९६ से
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।
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