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ले वसंत आया

डॉ. भगवान सहाय मीना
जयपुर, (राजस्थान)
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विकल नव कोंपले, नव कली की चित्कार,
मुरझाए फूलों का रूदन, ले वसंत आया।

गरीब दीनहीन की दुर्दशा, महंगाई की मार,
भ्रष्टाचार का विकट जाल, ले वसंत आया।

जाति धर्म के नाम रचित, चक्रव्यूह कितने,
नित नए षड्यंत्र मनुज के, ले वसंत आया।

हर दहलीज पर, मां बहन बेटी का अपमान,
बगिया में भंवरों की क्रुरता, ले वसंत आया।

अब रिश्ते ही, रिश्तों के काटते गले बेरहम,
मां के दूध में चलती तलवार, ले वसंत आया।

स्वार्थ की मिठास में, खून से तरबतर दामन,
तो कहीं दरारों से भरा आंगन, ले वसंत आया।

संबंधों में, अपनों के लिए बदल गये अपने,
बाजार से झूठ बोलते आईने, ले वसंत आया।

अदली – बदली सरकारें, बिन बदले मतदाता,
भोर सुहावनी मृग मरीचिका, ले वसंत आया।

परिचय :- डॉ. भगवान सहाय मीना (वरिष्ठ अध्यापक राजस्थान सरकार)
निवासी : बाड़ा पदम पुरा, जयपुर, राजस्थान
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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