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संवारना भी चाहा किस्मत वही रही

रामेश्वर दास भांन
करनाल (हरियाणा)
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सोचा था पुरी होगी, वो बात पुरी ना हो सकी,
मन की बात अपने, मन में ही रही,

कोशिशों में रहा हूँ, पूरी कर पाऊं उसे,
उम्र जैसे बढ़ती गई, वो हौंसले तोड़ती रही,

सोचा था पाने का उसको, स्कूलों के दौर से,
वो अब तलक भी हमसे, दूर ही रही,

कभी लगता था आसान, पा लेंगे उसको हम,
करीब भी पहुंचे, वो और आगे चलती रही,

जुड़े थे बहुत सारे ख्वाब, ज़िंदगी के उससे,
संवारना भी चाहा, मेरी किस्मत वहीं रही,

उठ गया हैं यकीन, अब तो उसको पाने का,
दिन बीतते गए और उम्र निकलती रही,

जी लेंगे अब तो जिंदगी, समझौतों के साथ अपनी,
जो सोचा था खुद के लिए, वो सोच अब जाती रही

परिचय : रामेश्वर दास भांन
निवासी : करनाल (हरियाणा)
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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