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विवशता विछोह की

ज्ञानेन्द्र पाण्डेय “अवधी-मधुरस”
अमेठी (उत्तर प्रदेश)

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मंदिरा सवैया

राह निहारि थकीं अँखियाँ नहिं दीखतु राउरु काउ करूँ ?
आसु नहीं पतियातु कतौ जसि लागतु खोहु म डूबि मरूँ ।
खासु नहीं कहुँ जे दुलराबयि अंधि कुँआ बिचु बैठि सरूँ ।
हे सखिया कछु तौ बतलाउ त कैसि हिया भलु धीरु धरूँ ।।

लाजु न लाबतु ढ़ीठु बड़ौ सहुँआतु न मोहिं त का करिहौं ।
भायि गयो दुसरौ हउ लागतु दूरि बसौ जहु का धरिहौं ।
यादु दिलाइतु बातनु ते जउ भेंटउँ ताहि मुँहा जरिहौं ।
हाय सखी मन कै बतिया दइझारु बिना कँहवाँ गरिहौं ।।

भोरहिं जागि मनाबतु देउ सनेसु हमारु जिया कहिहौ ।
रातिउ नींदु न आबतु बाहि न चैनु दिना भलुके रहिहौ ।
साँझि भये हरहा घरु आबतु साँसरि कूँ कबु लौ डहिहौ ।
खातु अहौ छिंटकानि कँरौंदु जही भलु मालु कहौ खहिहौ ??

मीतु सुनौ जहु मादकु यौबनु एकु दिना ढ़रिकै सचु है ।
चाँदु अमाबसु गायबु होतु ज एकु दिना डुरिकै सचु है ।
रंगु चढ़ै हुलसै जियरा भलु एकु दिना झरिकै सचु है ।
लौटि हँ आबहु लौटि हँ आबहु एकु दिना घरिकै सचु है ।।

जानतु हौ तुमहूँ भलुके सुखु ना मिलिहैं कितनौ चइहौ ।
औरनु संगु मँझौ कितनौ मुलु अंतिमु ठाँउं घरा अइहौ ।
साँचि कहौं गठियायि मना इकु बातु तनी हँ भली धइहौ ।
आउ चहे कबौ जिनि आउ जही सचु हौ न हमैं पइहौ ।।

परिचय :-  ज्ञानेन्द्र पाण्डेय “अवधी-मधुरस”
निवासी : अमेठी (उत्तर प्रदेश)
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।


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