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पिंजरा इश्क़ का

डॉ. वासिफ़ काज़ी
इंदौर (मध्य प्रदेश)
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हर पल…. उन्हें बस याद करते हैं।
हम वक़्त….. कहाँ बर्बाद करते हैं।।

बस…… उनके तसव्वुर से अपना।
आशियाना…….. आबाद करते हैं।।

चुपचाप….. सह लेते हैं सारे सितम।
ख़िलाफ़ उनके कहां जेहाद करते हैं।।

ख़ुद रहते हैं……. इश्क़ के पिंजरे में।
बस परिंदों को हम आज़ाद करते हैं।।

“काज़ी”……… चाहत की जादूगरी से।
रंज के लम्हों को भी….. शाद करते हैं।।

परिचय :- डॉ. वासिफ़ काज़ी “शायर”
निवासी : इंदौर (मध्यप्रदेश)
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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