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कैसे श्रीराम लिखूं

डाॅ. रेश्मा पाटील
निपाणी, बेलगम (कर्नाटक)
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सब दंभ भरा दिखावा रहे गया जहा उस जमाने का कैसे गूणगाण लिखूं
यहा रोज हरण होती मानवता फिर कैसे श्रीराम लिखूं।

ना नारी मे अब सीता दिखती ना नर मे कहीं राम दिखे
जहाँ टुकड़े-टुकड़े हो श्रध्दाये बिखरी वहा कैसे राधेश्याम लिखूं।

जलता समाज दहेज की आग मे बिकता दुल्हा मंडी मे
जहाँ रोज सती की जाती दुल्हन वहां कैसे सियाराम लिखूं।

जहाँ महिला आरक्षण की धूम मची और गर्भ मे भी नहीं सुरक्षित बेटियां
इस जमाने मे अब माँ के दिल का क्या हाल लिखूं।

जहाँ गली-गली रावण, दुःशासनों की भरभार भरी और दिखे नहीं
द्रौपदी का घनश्याम कहीं वहाँ कैसे नारी को निर्भया लिखूं।

जहाँ शिक्षा व्यवस्था की मंडी लग गयी और परीक्षाएं बेमानी हो गयी
जो सिर्फ कमाई का पाठ पढ़े उसको को क्या विद्यावान लिखूं।

बेरोजगार और बेकार युवा यहा मारे-मारे फिरते है
सिर्फ आश्सवासन पर ठगी जाती जनता फिर कैसे सूराज्य लिखूं।

जहाँ धर्म बाटता इन्सानो को और महँगायी इन्सानियत को
जहाँ विकास के नाम पे विनाश हो रहा वहाँ कैसे विश्वास लिखूं।

आरोप प्रत्यारोप के चक्की मे भोली जनता पिसती है
हतबल खडी न्यायपालिका इन्साफ होता है बुलडोजर से फिर कैसे संविधान लिखूं।

चुनावी मौसम के होते ही पतझड़ मे भी गुल खिल जाते
खरीदफरोश होती पार्षदों की बस छीना-झपटी का खेल है चलता उसे कैसे लोकतंत्र लिखूं।

जो दे रहा वसुधैव कुटूबंकमं का नारा, उस कुटूबं मे गृहकलह मची
जिस जंहा पे महायुद्ध मंडलाये उसे कैसे एकाकार लिखूं।

परिचय :-  डाॅ. रेश्मा पाटील
निवासी : निपाणी, जिला- बेलगम (कर्नाटक)
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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