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मां की ममता

गौरव श्रीवास्तव
अमावा (लखनऊ)
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मां की ममता धरा पर अमर हो गई,
बात वर्षों पुरानी बहुत हो गई,
मां के आंचल में मुझको पता न चला,
दिन ये कब ढल गया रात कब खो गई।

युग से चलती चली आ रही ये पृथा,
मां ही हरती है बेटे की हर दुख व्यथा,
त्रेता युग की कहानी सुनाता हूं मैं,
राम के प्रेम की है ये सारी कथा।

राम के जन्म से लोग हर्षित हुए,
राम के चरणों में सब समर्पित हुए,
माई कौशल्या मन में करें कल्पना,
प्रभु श्री राम के पाद अर्पित हुए।

दिन ये ढलने लगे राम हो गए बड़े,
मझली मां के सदन भाग होते खड़े,
देखकर स्वप्न में मातु कैकेई को,
जाना है रात में अपनी जिद पर अड़े।

कुहुकनी ले तेरा ये कुहुक है जगा,
देख कर स्वप्न तेरा भवन से जगा,
राम को छोड़ कर बहन के द्वार पर,
राम के प्रेम में मां भिगोती धरा।

बात द्वापर की जब याद आती मुझे,
मां यशोदा की ममता लुभाती मुझे,
कृष्ण के प्रेम में मर मिटी गोपियां,
मुरली की तान मोहित सुनाती मुझे।

धीरे-धीरे है बीता समय इस कदर,
छा गया सब जगह कलयुगी ये पहर,
मां की ममता हृदय से यूं ओझल हुई,
मां को बाहर सदन से किया इस कदर।

मां का पावन ह्रदय करूणा का ये सदन,
मां की ममता दिखाने का करता जतन,
श्रेष्ठ कलयुग में गौरव की मां हो गई,
उसने मेरे लिए ये किए है जतन।

अपने घर के लिए धूप सहती है वो,
सब की सुनती मगर कुछ ना कहती हैं वो,
सोचती हैं मैं पढ़ लिख बड़ा हो गया,
दुख व्यथा सारी पीड़ा भी हरती है वो।।

परिचय :- गौरव श्रीवास्तव
निवासी – अमावा (लखनऊ)
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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