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कहाँ गई अब चिट्ठी प्यारी

अंजनी कुमार चतुर्वेदी
निवाड़ी (मध्य प्रदेश)
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बीत गए अब चिट्ठी के दिन।
सीख लिया जीना चिट्ठी बिन।
सभी लोग लिखते थे चिट्ठी।
होती थी वह खट्टी मीठी।

चिट्ठी सभी खबर लाती थी।
हाल सभी के बतलाती थी।
अच्छी बुरी खबर सब लाती।
दुख में सबका मन बहलाती।

अगर नौकरी लग जाती थी।
खोज खबर चिट्ठी लाती थी।
पोस्टमैन घर घर जाते थे।
डाकिया बाबू कहलाते थे।

बुरी खबर जब भी लाते थे।
उन पर ही सब झल्लाते थे।
धीरजवान डाकिया बाबू।
खुद पर वे रखते थे काबू।

पलट जवाब नहीं देते थे।
बातें सबकी सह लेते थे।
खबर नौकरी की लाते थे।
मन वांछित इनाम पाते थे।

बाहर खड़े बुलाते रहते।
बरसा जाड़ा गर्मी सहते।
लिखती थी बिरहन मन बातें।
दिन कटता कटती ना रातें।

चिट्ठी पाते ही आ जाना।
साजन अब ना देर लगाना।
चिट्ठी माँ लिखती लल्ला को।
रोज देखती हूँ बल्ला को।

रोज खेलने तू जाता था।
लौट देर जब घर आता था।
पापा से तू डर जाता था।
छड़ी देख तू घबराता था।

कुछ भी बोल नहीं पाता था।
आँचल में तू छुप जाता था।
बहन बचा लेती थी तुझको।
पापा आँख दिखाते मुझको।

तेरी बेटी आँख दिखाती।
मुझसे चिट्ठी रोज लिखाती।
बहू याद करती है तुझको।
मन की बात बताती मुझको।

भारत माँ पर जान लुटाना।
मिले समय तो घर आ जाना।
भारत माँ की लाज बचाना।
सदा दूध का फर्ज निभाना।

मिले समय तो मुन्ना आजा।
बनी हाथ की रोटी खाजा।
तेरे मन की खीर बनाऊँ।
तू रूठे मैं तुझे मनाऊँ।

कोई किसी की चिट्ठी पाता,
पढ़कर सब को भेद बताता।
लेकिन भेद छुपा ना पाता।
डाँट बड़े बूढ़ों से खाता।

अब चिट्ठी का नाम नहीं है।
उसका कोई काम नहीं है।
दिल से कोइ नहीं लिखता है।
अब वो प्यार कहाँ दिखता है।

चिट्ठी होती थी अलबेली,
वह थी सबकी परम सहेली।
अब चिट्ठी ने जान लिया है।
अंत स्वयं का मान लिया है।

अब ना कभी लिखी जाऊँगी।
मैं सम्मान नहीं पाऊँगी।
घर में बंद हुआ है दिखना।
भूल जाओगे तुम भी लिखना।

परिचय :अंजनी कुमार चतुर्वेदी
निवासी : निवाड़ी (मध्य प्रदेश)
शिक्षा : एम.एस.सी एम.एड स्वर्ण पदक प्राप्त
सम्प्रति : वरिष्ठ व्याख्याता शासकीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय क्रमांक २ निवाड़ी
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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