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खिलौने का सत्य

संजय जैन
मुंबई (महाराष्ट्र)
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तू माटी का एक पुतला है
तुझे माटी में ही मिलना है।
बस कट पुतली बनकर ही
मानव जीवन को जीना है।
और मानव के पुतले को
मानव से ही खेलना है।
और फिर बर्षो के उपरांत
तुझे माटी में मिलना है।।

लिया है जन्म जिस घर में तूने।
उसका महौल बहुत अच्छा है।
न घर में कोई कलह आशांति है।
पर दिलों में प्रेम आपार है।।

आज मन बहुत विचलित है।
न कोई गम है और न दुख है।
न ही सोच में कोई अंतर है।
फिर भी न जाने क्यों उदास है।।

देख उदासी को मेरी सब ने
तब आकर कारण पूछा मुझसे।
नहीं है मन में जब कोई बात
तो क्या उत्तर दू मैं उनको।
पर देखो इस पुतले को
जिसने कितना कुछ पाया है।
तभी तो जग में भी इस ने
बहुत ही नाम कमाया है।।

परंतु आज इस को भी
हुआ एहसास सत्य का।
नहीं है अब भरोसा इसको
जिसे एक दिन जाना है।
और माटी के खिलौने को
माटी में ही मिल जाना है।
फिर पुन: माटी को ही
नया रूप लेकर आना है।।

तभी तो लोग कहते है
बैठकर अपनो के साथ।
जो आया है वो जायेगा
फिर क्यों इससे घबराना है।
पर कहने और सुनने में तो
बहुत अच्छा लगता है।
पर सच में मरने से तो
सभी को डर लगता है।।

परिचय :- बीना (मध्यप्रदेश) के निवासी संजय जैन वर्तमान में मुम्बई में कार्यरत हैं। करीब २५ वर्ष से बम्बई में पब्लिक लिमिटेड कंपनी में मैनेजर के पद पर कार्यरत श्री जैन शौक से लेखन में सक्रिय हैं और इनकी रचनाएं राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच (hindirakshak.com) सहित बहुत सारे अखबारों-पत्रिकाओं में प्रकाशित होते रहती हैं। ये अपनी लेखनी का जौहर कई मंचों पर भी दिखा चुके हैं। इसी के चलते कई सामाजिक संस्थाओं द्वारा इन्हें सम्मानित किया जा चुका है। आप मुम्बई के नवभारत टाईम्स में ब्लॉग भी लिखने के साथ-साथ मास्टर ऑफ़ कॉमर्स की शैक्षणिक योग्यता रखने वाले संजय जैन कॊ लेख,कविताएं और गीत आदि लिखने का बहुत शौक है, आप लिखने-पढ़ने के ज़रिए सामाजिक गतिविधियों में भी हमेशा सक्रिय रहते हैं।
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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