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बगावत भी जरूरी

राजेन्द्र लाहिरी
पामगढ़ (छत्तीसगढ़)
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जो बैठा है खाली पेट,
बगावत वहां से उठ सकता है,
किसान, विद्वान, नादान,
अंजान, बेजुबान,
सताए स्त्री पुरूष इंसान,
मदमस्त सत्ताईयों के
सुख चैन लूट सकता है,
हाँ मालूम है की सत्ता हमारी
हलक से निवाला खींच सकता है,
लम्पटों, महामूर्खों,
अंधभक्तों की फसल को
वाहियात बातों में
उलझा सींच सकता है,
मत भूलिए की
जिसके सीने में
वतन के लिए लगावट है,
वहीं कर सकता बगावत है,
बगावत का, विरोध का
डर न हो तो
सत्ताधारी बेलगाम,
मदमस्त हो जाता है,
उनके लिए हर गैरजरूरी
काम जरूरी हो जाता है,
पर ये नहीं सोचता कि
अंदर ही अंदर बहती लावा
ज्वालामुखी बन
कभी भी फूट सकता है,
आसमान की ओर निहारता,
लिया बैठा सूखा खेत,
बगावत वहां से उठ सकता है,
इन नामुरादों की
दुनिया लूट सकता है।

परिचय :-  राजेन्द्र लाहिरी
निवासी : पामगढ़ (छत्तीसगढ़)
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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