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अलविदा

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे
मंडला, (मध्य प्रदेश)
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बीत गया जो, बीत गया वह,
आगत का सत्कार करो।
नूतन का करके अभिनंदन,
जाते से भी प्यार करो।।

कहीं तिमिर, तो कहीं उजाला,
सूरज है तो रातें हैं।
सुख,विलास है, तो बेहद ही,
दुक्खों की बरसातें हैं
जीवन फूलों का गुलदस्ता,
हर पल को उपहार करो।
नूतन का करके अभिनंदन,
जाते से भी प्यार करो।।

एक साल जो रहा साथ में,
वह भी तो अपना ही था।
हमने जो खुशहाली सोची,
वह भी तो सपना ही था।।
दुख, तकलीफें, व्यथा,
वेदना, कांटों का संहार करो।
नूतन का करके अभिनंदन,
जाते से भी प्यार करो।।

यही हक़ीक़त यही ज़िन्दगी,
है बहार तो वीराना।
कभी लगे मौसम अपना-सा,
कभी यही है अंजाना।।
आशाओं का दामन थामो,
अवसादों पर वार करो।
नूतन का करके अभिनंदन,
जाते से भी प्यार करो।।

परिचय :- प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे
जन्म : २५-०९-१९६१
निवासी : मंडला, (मध्य प्रदेश)
शिक्षा : एम.ए (इतिहास) (मेरिट होल्डर), एल.एल.बी, पी-एच.डी. (इतिहास)
सम्प्रति : प्राध्यापक व विभागाध्यक्ष इतिहास/प्रभारी प्राचार्य शासकीय जेएमसी महिला महाविद्यालय
प्रकाशित रचनाएं व गतिविधियां : पांच हज़ार से अधिक फुचकर रचनाएं प्रकाशित
प्रसारण : रेडियो, भोपाल दूरदर्शन, ज़ी-स्माइल, ज़ी टी.वी., स्टार टी.वी., ई.टी.वी., सब-टी.वी., साधना चैनल से प्रसारण।
संपादन : ९ कृतियों व ८ पत्रिकाओं/विशेषांकों का सम्पादन। एम.ए.इतिहास की पुस्तकों का लेखन
सम्मान/अलंकरण/ प्रशस्ति पत्र : देश के लगभग सभी राज्यों में ७०० से अधिक सारस्वत सम्मान/ अवार्ड/ अभिनंदन। म.प्र.साहित्य अकादमी का अखिल भारतीय माखनलाल चतुर्वेदी अवार्ड (५१०००/ रु.)
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।

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