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बचपन सुहाना

सोनल सिंह “सोनू”
कोलिहापुरी दुर्ग (छतीसगढ़)

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बीता हुआ वो गुजरा जमाना,
दिल चाहे वहाँ लौटकर जाना।
होता था जहाँ नित नया फसाना,
याद आता है वो बचपन सुहाना।

बगीचे से अमरूद चुराना,
कागज की कश्ती तैराना।
दोस्ती के लिए हद से गुजर जाना,
याद आता है वो बचपन सुहाना।

बेफिक्री का वो अफसाना,
गूंजता हुआ खूबसूरत तराना।
नासमझी में कुछ भी कर जाना,
याद आता है वो बचपन सुहाना।

माँ का लाड लडाना,
पापा की डाँट से बचाना।
दोस्तों संग मौज मनाना,
याद आता है बचपन सुहाना।

परिचय – सोनल सिंह “सोनू”
निवासी : कोलिहापुरी दुर्ग (छतीसगढ़)
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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