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सुधियों की कस्तूरी

मीना भट्ट “सिद्धार्थ”
जबलपुर (मध्य प्रदेश)
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पिय की सुधियों की कस्तूरी,
महकाती मन का मधुवन।

मन-मृग वन-वन विचरण करता,
नित पाने को कस्तूरी।
हाय सुहाती नहीं हमें अब,
प्रियतम से किंचित दूरी।।
ज्यों सागर से मिलने आतुर,
सरिता की धड़कन-धड़कन।

पिय की सुधियों की कस्तूरी,
महकाती मन का मधुवन।।

मृग-मरीचिका में हम उलझे,
मिली ठोकरें हुए विकल।
अंतर्मन में है कस्तूरी,
फिर भी आडम्बर का छल।।
समझ न पाये हाय मर्म हम,
तोड़ गुत्थियों के बंधन।।

पिय की सुधियों की कस्तूरी,
महकाती मन का मधुवन।।

मुश्किल है कस्तूरी मिलना,
उसकी चाहत को पाना।
इच्छाएँ जब रहीं अधूरी,
तब महत्व हमने जाना।।
साँसें बनकर दिल में धड़कें,
जीना दूभर दुखी नयन।

पिय की सुधियों की कस्तूरी,
महकाती मन का मधुवन।।

परिचय :- मीना भट्ट “सिद्धार्थ”
निवासी : जबलपुर (मध्य प्रदेश)
पति : पुरुषोत्तम भट्ट
माता : स्व. सुमित्रा पाठक
पिता : स्व. हरि मोहन पाठक
पुत्र : सौरभ भट्ट
पुत्र वधू : डॉ. प्रीति भट्ट
पौत्री : निहिरा, नैनिका
सम्प्रति : सेवानिवृत्त जिला न्यायाधीश (मध्य प्रदेश), लोकायुक्त संभागीय सतर्कता समिति जबलपुर की भूतपूर्व चेयरपर्सन।
प्रकाशित पुस्तक : पंचतंत्र में नारी, काव्यमेध, आहुति, सवैया संग्रह, पंख पसारे पंछी
सम्मान : विक्रमशिला हिंदी विश्वविद्यालय द्वारा, विद्या सागर और साहित्य संगम संस्थान दिल्ली द्वारा, विद्या वाचस्पति की मानद उपाधि, गुंजन कला सदन द्वारा, महिला रत्न अलंकरण तथा कई अन्य साहित्यिक संस्थाओं से सम्मानित
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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