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मेरा सफर…

शैलेष कुमार कुचया
कटनी (मध्य प्रदेश)
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सफर पर निकले
पीछे कदम ना करना
जो आये मुश्किल
रफ्तार तेज करना।।

कांटे बहुत है
मंजिल में मेरे
चल रहे है मगर
साथ है कोई अपना।।

दुश्मन अंधेरा क्या करेंगे
पग-पग पर मेरे
दिए की रोशनी
में चलना सीखा है मैने।।

थक कर जब मैं बैठा
चलना बहुत था
दिख रही थी मंजिल
हाथ थामा औऱ चल दी अम्मा।।

बहुत मिली रुकावटे
राह टेढ़ी-मेढ़ी थी
चल रहे थे हम
क्योकि साथ थी अम्मा।।

पहुँचना मुश्किल लगा
सफर में जब भी
याद किया माँ को तो
हिम्मत मिली हमे।।

आराम करेंगे फुर्सत से
अभी चलना बहुत है
मिले जो लोग राह में
भटकाया बहुत है।।

परिचय :-  शैलेष कुमार कुचया
मूलनिवासी : कटनी (म,प्र)
वर्तमान निवास : अम्बाह (मुरैना)
प्रकाशन : मेरी रचनाएँ गहोई दर्पण ई पेपर ग्वालियर से प्रकाशित हो चुकी है।
पद : टी, ए विधुत विभाग अम्बाह में पदस्थ
शिक्षा : स्नातक
भाषा : हिंदी, बुंदेली
विशेष : स्वरचित रचना, विचारो हेतु विभाग उत्तरदायी नही है, इनका संबंध स्वउपजित एवं व्यक्तिगत है।
घोषणा : में यह प्रमाणित करता हूं, कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।


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