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लेखन का दम

विजय गुप्ता
दुर्ग (छत्तीसगढ़)
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कवियित्री ‘अनामिका अंबर’ को पढ़ने से रोक वजह से सृजित मेरी नई छंद रचना। सृजनकारों की आन-बान-शान लेखन सृजन का पुरातन इतिहास स्वाधीनता युद्ध तक और रीति भक्ति काल तक ले जाता है। आव्हान है पुराने युग के साहित्यकारों के देश में प्रखर कलम चलती रहे और देश के सही मुद्दों पर लिखती रहे। आभार सहित।

हिंदुस्तान में लेखन का दम, गुजरे युग परखा होगा।
तुलसी कबीर मीरा रहीम, लेखन युग बदला होगा।
आजादी अमृत महोत्सव, जनता पुलकित भारी है।
कवि कवियित्री पे सीधी रोक, ‘अनामिका’ बेचारी है।
हरेक घर कविता निकलेगी, अंबर तक की बारी है।

भक्ति रीति युग रचनाओं में, खूब निपुणता पा जाते।
गंगा यमुना सरयू गाथा में, साहित्य झलक महकाते।
कदंब पेड़ काव्य ’सुभद्रा’, पावन यमुना दिखलाती।
विषैली यमुना नदी जल को, कालिया मर्दन कराती।
पर्यावरण जो वर्तमान में, समझना कलम को होगा।
प्रकृति बचाव साहित्य में, भला रूप भरना होगा।
हिंदुस्तान में लेखन का दम, गुजरे युग परखा होगा।
तुलसी कबीर मीरा रहीम, लेखन युग बदला होगा।
आजादी अमृत महोत्सव, जनता पुलकित भारी है।
कवि कवियित्री पे सीधी रोक, ‘अनामिका’ बेचारी है।
हरेक घर कविता निकलेगी, अंबर तक की बारी है।

सप्रे सुंदर बख्शी मुक्तिबोध, लेखों को गढ़ लेना है।
वर्तमान में राजनीति तो, मानो चना चबेना है।
संसद भवन में बैठकर सब, मात्र बहस ही करते हैं।
लोकतंत्र में वार्ता मन भर, कवि लेखन से डरते हैं।
जाति धर्म सत्ता वोट उलझन, में ही समय खपाते हैं।
प्रदूषण शोध सृजन काज, सिर्फ बातों से न होगा।
हिंदुस्तान में लेखन का दम, गुजरे युग परखा होगा।
तुलसी कबीर मीरा रहीम, लेखन युग बदला होगा।
आजादी अमृत महोत्सव, जनता पुलकित भारी है।
कवि कवियित्री पे सीधी रोक, ‘अनामिका’ बेचारी है।
हरेक घर कविता निकलेगी, अंबर तक की बारी है।

भारत तेरे टुकड़े होंगे, शव के भी छत्तीस होंगे।
गलियारों की हो हल्ला चीख, गला दांत बत्तीस होंगे।
नदियां बटवारा पुल शराब, ड्रग तस्कर बहस भोगें।
जगत देश की चिंता खोकर, कलम पुजारी गुम होंगें।
वक्ता श्रोता यहीं मिलते हैं, लेखक पाठक भी आएं।
प्रखर लेखन से असर मिले, मान शान बढ़ना होगा।
हिंदुस्तान में लेखन का दम, गुजरे युग परखा होगा।
तुलसी कबीर मीरा रहीम, लेखन युग बदला होगा।
आजादी अमृत महोत्सव, जनता पुलकित भारी है।
कवि कवियित्री पे सीधी रोक, ‘अनामिका’ बेचारी है।
हरेक घर कविता निकलेगी, अंबर तक की बारी है।

परिचय :- विजय कुमार गुप्ता
जन्म : १२ मई १९५६
निवासी : दुर्ग छत्तीसगढ़

उद्योगपति : १९७८ से विजय इंडस्ट्रीज दुर्ग
साहित्य रुचि : १९९७ से काव्य लेखन, तत्कालीन प्रधान मंत्री अटल जी द्वारा प्रशंसा पत्र
काव्य संग्रह प्रकाशन : १ करवट लेता समय २०१६ में, २ वक़्त दरकता है २०१८
राष्ट्रीय प्रशिक्षक : (व्यक्तित्व विकास) अंतराष्ट्रीय जेसीस १९९६ से
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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