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शिक्षा व्यवस्था

शशि चन्दन
इंदौर (मध्य प्रदेश)
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शिक्षा जीवन का सार है,
संस्कारों का मीठा संसार है,
आत्मा का परमात्मा से मिलन का…
एकमात्र यही सच्चा द्वार है।।

दिनचर्या हो कैसी, व्यवहार हो कैसा,
कोरे मन पे लिखो बस न ऐसा वैसा..
कलम ही सारथी बेड़ा लगाती पार,
शिक्षा ना खरीदी जाती देकर पैसा।।

भगवान राम कृष्ण भी पढ़े गुरुकुल में,
सर्व शिरोमणी बने तब रघुकुल में..।
जीवन ज्योति के आखर आखर जोड़,
गीताधारी कहलाए जगतकुल में।।

युग बीते परिवर्तन हुए बदली नियमावली,
विद्या मंदिरों में लगने लगी हाट बाजारों की गली,
विद्यार्थी जीवन सिमटने लगा किताबों में..
मां सरस्वती की वीणा रूदन कर विदा हो चली।।

आधुनिक शिक्षा व्यवस्था चलती ठेकों पे,
कलम से कलाम बनना हुआ दूर,
परीक्षा उत्तीर्ण होती आज नेगों से….।।
ज्ञान का प्रकाश नहीं..
लाचारी भरी शिक्षकों की जेबों में….।।

देश के भविष्य बन गए किताबी रट्टू तोता
नींव के पत्थर का भान नहीं, कंगूरे पर हर कोई सोता,
थक गई बूढ़ी लाठियां, शिक्षित के सपूतों से…
हंस रहा नोटों वाला, गरीब ज्ञानी बस देख रोता….।।

होड़ की दौड़ में फांसी चढ़े डिग्रियों वाले,
अफसरजादी करते अ से आने तक न आने वाले,
शिक्षा से मिलता रोजगार के सब झूठ… हुआ साहेब,
मेहनत से किस्मत लिखने वाले हो गए मयखाने जाने वाले।।

उठो जागो और अपने लक्ष्य को प्राप्त करो,
स्वामी विवेकानंद कह कह कर हारे…
शिक्षा विभाग की घड़ी आलसी हो गई है,
किताबी बोझा ढोते नरेंद्र अब किस के सहारे..।।

परिचय :- इंदौर (मध्य प्रदेश) की निवासी अपने शब्दों की निर्झर बरखा करने वाली शशि चन्दन एक ग्रहणी का दायित्व निभाते हुए अपने अनछुए अनसुलझे एहसासों को अपनी लेखनी के माध्यम से स्याह रंग कोरे कागज़ पर उतारतीं हैं, जो उन्हें खुशियों के आसमानी रंग देते हैं।
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।


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