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मर रहीं हैं जिंदगी जीने के लिए

रामेश्वर दास भांन
करनाल (हरियाणा)
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साथ रहकर कर कुछ महिने मेरे,
अब छोड़ दिया है तूने हाल पर मेरे,
तन्हाइयों को तूने मेरी ज्यादा किया,
दूर जाकर इस दिल से मेरे,

बड़ा अहम रोल रहा घर का तेरे,
जिसने झूठा अहम भरा मन में तेरे,
तूने भी कुछ नहीं सोचा खुद के बारे,
अब कैसे आऊं मैं दर पर तेरे,

लेकर आया था संदेशा घर पर,
उस थाने का थानेदार मेरे,
कुछ उल्टा सीधा लिखा था उसमें,
जो शिकायत खिलाफ दी मेरी तूने,

बात यहां तक भी रहती सुलझ जाती,
अब बुलाने लगी है कोर्ट भी मुझे,
तूने एक बार अपना घर नहीं समझा,
मां बाप तेरे भी तों हैं जैसें हैं मेरे,

इल्ज़ाम लगाएं है बेतुके तुने,
किस किस का जवाब दूं तूझे किस लिए,
मैंने लगा दिया है सब कुछ दांव पर,
घर की इज्ज़त अब बचाने के लिए,

तू जीत रही है हर बार मुझसे,
मैं तुझ से हार रहा हूं अपने घर के लिए,
सामान तो उठवा लिया है तूने अपना,
मेरा घर खाली है अब तो तेरे लिए,

सब्र अब भी नहीं आया तुझको,
बेसब्र हो रहे हो मुझे अंदर करवाने के लिए,
मैं अकेला सब झेल रहा दांव पेंच तेरे,
ज़ख्मी तो हो गया हूं मरहम है दूर अब मेरे लिए,

मेरी और से आज़ाद है तूं अब,
कोई और घर ढूंढ शिकार बनाने के लिए,
मुझे तो लुट लिया इन तेरी तारीखों ने,
अब किसी और को देख दिल बहलाने के लिए,

बंद हो ऐसा प्रचलन जो शुरू हुआ आजकल,
मर रहीं हैं जिंदगी जीने के लिए,
कुछ समझ नही क्या हो गया है जमाने को,
अपना घर अपने ही हाथों उजाड़ने के लिए,

परिचय : रामेश्वर दास भांन
निवासी : करनाल (हरियाणा)
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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