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शीत ऋतु

डॉ. भगवान सहाय मीना
जयपुर, (राजस्थान)
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शीत ऋतु के बारे में उनसे पूछिए?
जुताई खेती किसानी की जाती हैं।
पूस की रात में कैसे नील गायें,
हलकु की फसल चट कर जाती हैं।

शीत ऋतु के बारे में उनसे पूछिए?
फसलों को ठंडी रातों में सींचते हैं।
आशाओं पर तुहिन पाला पड़ कर,
खेतों में लहलहाते सपने सूखते है।

शीत ऋतु के बारे में उनसे पूछिए?
वादी के ठिकानों में अडिग खड़े है।
मां भारती की सरहद पर खदानों में,
वीर हिम शिखरों पर मौत से अडे़ है।

शीत ऋतु के बारे में उनसे पूछिए?
जो राणा के रणवीर लौहा पीटते हैं।
स्वच्छंद गगन के नीचे श्रम स्वेद से,
भूखे शरद के पेट में घन ठोकते हैं।

शीत ऋतु के बारे में उनसे पूछिए?
जिस श्रमिक की हड्डियां अकड़ती है।
ईंट पत्थरों से भरी तगारि लेकर,
आसन्न प्रसव मजदूरिन सीढ़ी चढ़ती है।

शीत ऋतु के बारे में उनसे पूछिए?
चौराहे पगडंडी पर भीख मांगते है।
लोकतंत्र के साधक नींदें रैन बसेरों में,
जो शासन के गालों पर चांटे मारते हैं।

परिचय :- डॉ. भगवान सहाय मीना (वरिष्ठ अध्यापक राजस्थान सरकार)
निवासी : बाड़ा पदम पुरा, जयपुर, राजस्थान
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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