Thursday, November 7राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर आपका स्वागत है... अभी सम्पर्क करें ९८२७३६०३६०

नीलान्चल

अर्चना लवानिया
इंदौर (मध्य प्रदेश)
********************

बारिश की बूंदों से धूलकर
मटमेले बादलों की कैद से
मुक्त होकर गगन भी
नीलांबर बन मुस्कुराया है।
सुदूर पर्वत की चोटियां
लगती है नीलमणि सी,
फैला रही नीलिमा चारों ओर।
ओढ़ लिये है पेड़ों ने भी नीले दुशाले
धरती की हरीतिमा और
नभ की नीलिमा रच रही
जादू रंगों का अवर्णित संयोजन।
नीलांग पवन उड़ रही
ओढ़ नील वसन तट बंधो तक
भरे हुए यह नीलक्ष सरोवर
नीली आंखों से तकते हैं चहूँ ओर।
खिल उठे हैं सपनों से अनगिनत
निलांबुज प्रेम पराग बिखेरते नीलोत्पल।
नीलांजन भरे नेत्र वसुधा
लगती नीलांजना,
शनै-शनै फैलता नीलाभ
बिखरता यह नींल रंग का जादू
नील कृष्ण सा चित्त को हर्षाता हो।
मानौ समेट रहा हो अपने
बाहुपाश में वसुधा को
अपने नील रंग में रंग कर।।

परिचय :– अर्चना लवानिया
निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश)
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.com पर अणु डाक (मेल) कीजिये, अणु डाक करने के बाद हमे हमारे नंबर ९८२७३ ६०३६० पर सूचित अवश्य करें …🙏🏻

आपको यह रचना अच्छी लगे तो साझा अवश्य कीजिये और पढते रहे hindirakshak.com राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच से जुड़ने व कविताएं, कहानियां, लेख, आदि अपने चलभाष पर प्राप्त करने हेतु राष्ट्रीय  हिन्दी रक्षक मंच की इस लिंक को खोलें और लाइक करें 👉 👉 hindi rakshak manch  👈… राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच का सदस्य बनने हेतु अपने चलभाष पर पहले हमारा चलभाष क्रमांक ९८२७३ ६०३६० सुरक्षित कर लें फिर उस पर अपना नाम और कृपया मुझे जोड़ें लिखकर हमें भेजें…🙏🏻. 

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *