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नीलान्चल

अर्चना लवानिया
इंदौर (मध्य प्रदेश)
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बारिश की बूंदों से धूलकर
मटमेले बादलों की कैद से
मुक्त होकर गगन भी
नीलांबर बन मुस्कुराया है।
सुदूर पर्वत की चोटियां
लगती है नीलमणि सी,
फैला रही नीलिमा चारों ओर।
ओढ़ लिये है पेड़ों ने भी नीले दुशाले
धरती की हरीतिमा और
नभ की नीलिमा रच रही
जादू रंगों का अवर्णित संयोजन।
नीलांग पवन उड़ रही
ओढ़ नील वसन तट बंधो तक
भरे हुए यह नीलक्ष सरोवर
नीली आंखों से तकते हैं चहूँ ओर।
खिल उठे हैं सपनों से अनगिनत
निलांबुज प्रेम पराग बिखेरते नीलोत्पल।
नीलांजन भरे नेत्र वसुधा
लगती नीलांजना,
शनै-शनै फैलता नीलाभ
बिखरता यह नींल रंग का जादू
नील कृष्ण सा चित्त को हर्षाता हो।
मानौ समेट रहा हो अपने
बाहुपाश में वसुधा को
अपने नील रंग में रंग कर।।

परिचय :– अर्चना लवानिया
निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश)
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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