आचार्य डाॅ. वीरेन्द्र प्रताप सिंह ‘भ्रमर’
चित्रकूट धाम कर्वी, (उत्तर प्रदेश)
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“छंद परिचय”
छंद का नाम- शैल सुता वर्णिक छंद
वर्णवृत- नगण, जगण, जगण, जगण, जगण, जगण, जगण, लघु गुरु।
अंकावलि – १११, १२१, १२१, १२१, १२१, १२१, १२१, १२।
शिल्प- प्रति चरण २३ वर्ण, दो-दो चरण समतुकांत।नायिका की स्वप्निल कल्पनाओं का चित्रण
पुहुप पलाश निकुंज निमीलित नैनन ओझल सांझ ढले।
प्रिय पुलकावलि निर्भय निश्छल निर्मल भाव उजास मले।।मधुमय गंधिल याद पुरातन अक्षर-अक्षर प्रीति पढ़ें।
प्रियतम प्यार पगी गलियाँ पथ आज निशीथ दुलार गढ़ें।।
तन मन की अभिलाषित आकृति आतुरता सँग साथ चले।
प्रिय पुलकावलि निर्भय निश्छल निर्मल भाव उजास मले।।अधर धरे अधरोष्ठ परागित स्वप्निल भव्य वितान बने।
थर-थर काँप रहे अधराधर भावुकता पुरुषार्थ जने।।
मधुरिम मादकता ऋतु कीअति भीतर बाहर नित्य खले।
प्रिय पुलकावलि निर्भय निश्छल निर्मल भाव उजास मले।।मनसिज अंग प्रतीति प्रपोषित चित्त बिचित्त करे सजना।
विहँग प्रलाप करें निशि-वासर शोर विभोर करे अँगना।।
‘भ्रमर’ विशुद्ध विराग भरे विरहानल की अब ज्योति जले।
प्रिय पुलकावलि निर्भय निश्छल निर्मल भाव उजास मले।।
पिताश्री : स्व.श्री राम सिंह विशारद
माताश्री : स्व.श्रीमती सरयू सिंह
अर्धांगिनी : श्रीमती ममता सिंह
जन्मतिथि : २५ दिसम्बर १९५६
पुत्र : कौशलेंद्र प्रताप सिंह, मानवेन्द्र प्रताप सिंह
पुत्री : अर्चना सिंह
निवासी : चित्रकूट धाम कर्वी, (उत्तर प्रदेश)
शैक्षिक योग्यता : एम.ए (हिंदी, राजनीति), पी.एच.डी
साहित्यिक : गीतकार एवं छंद ऋषि
सम्प्रति : सेवा निवृत प्राचार्य/प्राध्यापक- डायट
साहित्य विधा : छांदस गीत, गज़ल, अन्यान्य विधाएँ।
प्रकाशित कृतियाँ : १- प्रश्नचिह्न २-राखी ३-द्रोपदी विलाप ४-कल्याणी काली ५-सत्य की ओर ६- आराधिता ७- शब्दाक्रुथी ८- छंद मणिमाला।
साझा-संग्रह : १४ (मेरे द्वारा संपादित), २२ कृतिकारों की पुस्तकों में भूमिका लेखन। राष्ट्रीय काव्य मंचों पर काव्य पाठ।
पुरस्कार- प्रमुख : ब्रजभाषा-विभूषण (राजस्थान), पं.शिवदत्त चतुर्वेदी सम्मान (आगरा), काव्य-मनीषी (नाथ द्वारा), हिंदी वाचस्पति सम्मान (गोवर्धन), श्रीकृष्ण सरल सम्मान (भोपाल,म.प्र.), गुरु द्रोण सम्मान (दिल्ली), तुलसी की सुगंध सम्मान (हरियाणा), कालीञ्जर सम्मान (उ प्र.), गीत-ऋषि सम्मान (एटा),आदि।
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