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‘कन्यादान’ एक अधूरी कहानी

डॉ. सुभाष कुमार नौहवार
मोदीपुरम, मेरठ (उत्तर प्रदेश)
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यू हेव अराइव्ड। योर डेस्टीनेशन इस ओन राइट। गाड़ी पार्क की और इधर-उधर देखा। सुभम मन-ही- मन बहुत खुश था कि जहाँ पर वह
जगह खरीदने जा रहा है, यहाँ की लोकेशन तो अच्छी है। पार्क है, मंदिर है। चौड़ी सड़कें हैं और मुख्य मार्ग के पास में ही है। अभी तो पाँच बजे हैं। छह बजे के लिए बोला था। प्रोपर्टी वाला या उसका कोई दलाल आएगा। कोई बात नहीं जगह अच्छी है। आज मंगलवार भी है तो क्यों न मंदिर में जाकर हनुमान जी के दर्श्न कर लिए जाएँ और मन्नत भी माँग ली जाए कि सौदा ठीक-ठीक पट जाए क्योंकि आजकल जमीन के मामलों में बड़ी धोखेवाजी चल रही है। सुभम ने मंदिर में प्रवेश किया, हाथ जोड़े प्रसाद चढ़ाकर दर्शन किए। लेकिन अचानक किसी आवाज ने उसकी धड़कनें बढ़ा दीं। कुछ भ्रमित-सा हुआ लेकिन जल्दी ही वो आवाज मंदिर के प्रांगण से बाहर निकल गई लेकिन सुभम को कुछ समझ में नहीं आ रहा था। अचानक मोबाइल पर संदेश आया कि अभी आधा घंटा और इंतजार करना पड़ेगा। सुभम ने सोचा कोई बात नहीं है। जगह वाकई अच्छी है। मंदिर में बैठो या पार्क में आधा घंटे का तो पता ही नहीं चलेगा कि कब निकल गया। सुभम ने सोचा कि चाकर पार्क का भी मुआइना कर लिया जाए। सुभम को लगा कि जैसे वह तो मंदिर से बाहर निकल आया है लेकिन उसके कान किसी आवाज का पीछा कर रहे हैं। ध्यान बँटाने की कोशिश में पार्क में इधर-उधर घूमा। बहुत अच्छा उद्यान है। इसका रखरखाव भी बहुत अच्छे तरीके से किया गया है। बैंच पर बैठकर मोबाइल निकाल ही था कि वही एक आवाज फिर से कान के परदे चीरती हुई दिल की धड़कनें बढ़ा गई। क्या ये आवाज मधु की है?? नहीं-नहीं ज़रूर कोई गलत फहमी होगी। वो भला यहाँ क्या करेगी? सुना है उसकी शादी तो किसी बड़े रईस से हुई है। उनके पास नौकर चाकरों की क्या कमी होती है। वो ऐसे ही पार्क में क्यों आएगी क्या पता इससे बड़ा पार्क तो उसके अपने महल में हो!! नहीं ये भ्रम है ये मधु की आवाज नहीं हो सकती। और फिर उसके बच्चे तो बड़े हो गए होंगे। बीस-बाइस साल पहले की बात है। फिर से वही आवाज- अरे बेटू उधर मत जाओ उधर पानी है। सुभम फिर से असहज हो गया। नहीं मुझे धोखा नहीं हो सकता। बेसक लम्बा अरसा हो गया हो लेकिन उसकी आवाज़ को मैं कैसे भूल सकता हूँ!! ये तो हू-ब-हू मधु की आवाज़ है। सुभम की धड़कनें तेज़ होने लगी थीं। वो अपनी बेकाबू धड़कनों को सँभाल नहीं पा रहा था। कुछ ज्यादा ही भावुक और नरवस हो गया था। उसने अपनी खुद की नज़रें नीचे गढ़ा लीं। अगर ये मधु ही हुई तो??
उसे ऐसे लग रहा था कि उसका शरीर शिथिल हो रहा है। वो अभी गिर पड़ेगा। उसने एक बैंच का सहारा लिया और बैठ गया। अब उसकी खुद की खुद से लड़ा‌ई शुरू हो गई। नहीं ये मधु ही है। अरे नहीं ये मधु कैसे हो सकती है? सुभम की आँखें भर आईं कि अगर ये मधु ही हुई
तो?? सुभम तुमने वादा किया था कि तुम उसकी ज़िंदगी में कभी भूलकर भी दुबारा नहीं आओगे। अगर ये सचमुच मधु ही हुई और उसने
तुम्हें पहचान लिया तो पता नहीं कैसे रियेक्ट करेगी?? नहीं-नहीं ये ठीक नहीं है। सुभम सचमुच भावुक हो गया था। आँसुओं ने आँखों का आदेश नहीं माना और पूरी शिद्दत के साथ छलक पड़े। इससे पहले कि किसी को पता चले, वह बैंच पर मुह फेर कर बैठ गया और संयत होने की कोशिश करने लगा। इतने में ही उसने अपने आप से हज़ारों सवाल पूछ डाले। हर शुबह शाम पूजा करते समय उसकी सलामती की मन्नत माँगता था और भगवान से पूछता था कि कैसी है मेरी मधु? हे ईश्वर मेरी एक मुलाकात मधु से करा दे!! और अब शायद ईश्वर को यही मंजूर है तो तुम यहाँ से भाग खड़े होना चाहते हो?? फिर अपने आप से अंतर्द्वंद्व शुरू हो गया। हे ईश्वर! क्या वो मुझे पहचानेगी?? इतने सालों बाद? सुभम को तो पूरा यकीन हो चला था कि वो मधु ही है। अब है या नहीं ये तो ईश्वर ही जाने। हे ईश्वर! मैं तो इस बात की कल्पना भी नहीं कर सकता था। क्या करने आया था और क्या होने जा रहा है? नहीं-नहीं भाड़ में जाए ऐसी प्रोपर्टी! अगर ये सचमुच मधु ही हुई तो
उसकी आगे की ज़िंदगी पर इस मुलाकात का क्या असर होगा?? नहीं- नहीं मुझे यहाँ से निकलना चाहिए। मैं शायद सही नहीं कर रहा हूँ। हे ईश्वर! मेरी मदद करो।
उसका शरीर यह सोच-सोचकर ही जमने लगा था। कि यह मधु ही है। वह अपने आप को उठाने की कोशिश कर रहा था लेकिन वह किंकर्त्तव्यविमूढ़-सा हो गया। अपने आप से उसका संवाद गहराता चला जा रहा था। तू क्यों परेशान हो रहा है?? तू ने तो कुछ भी गलत नहीं किया था न ?? तूने मधु का दामन नहीं छोड़ा था बल्कि मधु ने ही अपने घरवालों की मजबूरी में आकर तेरा दामन छोड़ा था। और अपराध तुझे महसूस हो रहा है? अगर उस समय मधु मजबूती से तुम्हारा साथ देती तो आज दोनों एक दूसरे के जीवन साथी होते! पर सुभम का मन आज भी ये मानने को तैयार नहीं कि मधु की कोई गलती थी। उसे आज भी ऐसा लगता है कि मधु को मजबूर किया गया होगा। अब जो भी हो अरसा गुजर गया। दोनों अपनी-अपनी राहों पर आगे बढ़ गए। कहीं इस मुलाकात से उसका हँसता खेलता परिवार न बिखर जाए? अब तू क्यों उसकी ज़िंदगी में विलेन की तरह एंट्री लेना चाहता है? वो आवाज़ प्रमाणित हो कर उसकी धड़कनों के बढ़ाए जा रही
थी। सुभम ऐसे उठा कि जैसे अपनी ही लाश उठाने की कोशिश कर रहा हो! तभी अचानक एक बॉल उसके पास आई। पीछे से किसी बच्चे की आवाज़ आई मामी बॉल फेंक दो ना प्लीज!! ओह तो ये मधु का भांजा है। मधु सुभम के पास आई और बोली भाई साहब ये बॉल दे दीजिए ज़रा। बच्चों से गलती से इधर आ गई है। सुभम ने मन में कहा- बच्चों से गलती हुई है लेकिन भगवान से नहीं। तुम ही मधु हो! पर पूछे कैसे? मधु ने बॉल लेते हुए अहसास किया कि इस आदमी को पहले कहीं देखा है। ये आवाज़ भी शायद सुनी सी लग रही है। शायद बरसों पहले। मधु के दिल में भी ये कशमकश शुरू हो गई। इस आदमी ने बॉल देते हुए मुझे कनखियों से क्यों देखा? और शायद ये रो भी रहा है। कहीं कोई परेशानी तो नहीं? नहीं-नहीं मुझे ऐसे किसी अनजान आदमी से क्या लेना-देना? होगा कोई! मधु के मन में भी अंतर्द्वंद्व शुरु हो गया। ये कोई ऐसा-वैसा तो लगता नहीं है। देखने में तो अच्छे घर का मालूम होता है। अगर मैं पूछ भी लुंगी तो इसमे मेरा क्या हरज है? मधु शुभम की तरफ बढ़ी कि उसने सुभम को देख लिया। वो अपने आँसू पौंछ रहा था। मधु की बैचैनी बढ़ने लगी। इस आदमी का चेहरा सुभम से मिलता जुलता है। कहीं ये सुभम तो नहीं? कब से मेरी आँखें तरस रही हैं उसकी एक झलक पाने को!! लेकिन अगर ये सुभम न हुआ तो?

मधु को भी पूरा यकीन हो चला था। मधु ने पास आकर कहा कि आप कौन हैं? इतना सुनते ही सुभम पर बिजली सी गिरी। इससे पहले कि सुभम कोई जवाब देता मधु ने कहा कि आप सुभम ही हो ना? सुभम ने पहले से ही तय कर लिया था कि वह अपना नाम सुरेश बता देगा ताकि मधु उसे न पहचान सके। वह उसकी जिंदगी में फिर से लौटकर कोई तूफान खड़ा नहीं करना चाहता। और थोड़ा संयत होकर बोलने ही वाला था कि की मधु का फोन बज उठा। मधु के फोन उठाते ही उसे सुनाई दे गया कि मधु तुम कहाँ हो? इतना सुनते ही सुभम के यकीन पर मुहर लग चुकी थी। हाँ ये मधु ही है। ये शायद मधु के पति का फोन था। फोन कट करने के बाद मधु का दिल ज़ोरों से धड़कने लगा। नहीं ये आदमी कोई और नहीं सुभम ही है। हे ईश्वर! इतने सालों बाद?? अगर सुभम की शक्ल का कोई और ही हुआ तो?? लेकिन उसे अब यकीन हो चला था कि ये सुभम ही है। अब मधु ने तय कर लिया कि वह इस भ्रम में नहीं रहेगी। अगर कोई और भी हुआ तो भी कोई बात नहीं है। वो अब पूछ कर ही रहेगी। सुभम पीठ पीछे ही खड़ा था। वह नरवस थी। उसकी चिर प्रतीक्षित आँखे भी अतिथि के अवलोकन पथ को प्रेमाश्रुओं से छिड़काव करने को आतुर थीं। अचानक सुभम के कंधे पर कोई नर्म मुलायम सा स्पर्श हुआ। बोली सुभम!! अब सुभम की झूठ बोलने की हिम्मत नहीं थी। उसे ऐसा लगा कि उसके कान जो अभी तक उसके शरीर दूर कहीं एक आवाज का पीछा कर रहे थे वो अचानक उसके शरीर मे फिट हो गए। सुभम पीछे मुड़ा। इतने अरसे बाद मधु को सिर से पैर तक देखा जैसे कि किसी की मुराद पूरी हो गई हो!! अचानक सुभम ने मधु के पैर छू लिए। मधु सकपका कर अचानक पीछे हटी और बोली ये क्या सुभम?? मुझे किस पाप का भागीदार बना रहे हो? सुभम बोला- नहीं मधु ऐसा नहीं है। मैं अपना पाप कम कर रहा हूँ। भक्त जब भगवान के पैर छू लेता है तो उसके सारे पाप नष्ट हो जाते हैं। मधु बोली प्यार करना कोई पाप है क्या? सुभम ने कहा= मैंने अपने जीवन में कोई-न-कोई पाप तो किया ही होगा कि अपने प्यार को न पा सका! वर्ना ना कोई जाति का बंधन था न धर्म का। फिर भी ऐसा ना हो सका! मधु ने कुछ संभलकर कहा- तुम क्या जानो सुभम कोरे कागज पर लिखे नाम को आप मिटा तो सकते हो लेकिन उसके निशान हमेशा रहते हैं। मैंने खुद अपने दिल के कोरे कागज पर प्रेम से तुम्हारा नाम लिखा था। दो वर्ष बाद मैं तुम्हे बताने की हिम्मत कर पाई थी। तुमने सोचा होगा कि जैसे लोग अक्सर कहा करते हैं कि एक औरत अग्नि के सात फेरों में अपने अतीत की सब यादें जलाकर नया जीवन शुरू कर देती है। पर ऐसा कहना आसान है। सच्चे प्रेमियों के लिए भूलपाना संभव नहीं हो पाता। मुझे नहीं पता सुभम तुमने मेरे बारे में क्या-क्या सोचा होगा? ये मेरा शरीर मेरे माँ-बाप ने पैदा किया। ये उनकी अमानत है। लेकिन आत्मा ईश्वर की देन है। माता पिता की इज्जत की खातिर मैंने उनकी इच्छा से शादी की। मेरे माता-पिताने कन्यादान के रूप में इस शरीर को किसी और को दान कर दिया। फिर मैंने इसी शरीर से उनकी परंपराएँ निबाहीं। पति को खुश किया उनके वंश को आगे बढ़ाने के लिए उनकी औलादें पैदा कीं। दान में मिली थी इसलिए मुझे जिसने जैसा चाहा वैसे ही सजाया संवारा। लेकिन मेरी आत्मा की खूबसूरती तो तेरे प्यार में थी। उस पर कोई और रंग न चढ़ सका। ये आत्मा, ये दिल मैंने तुम्हें अपने हाथों से दिया था। इस शरीर को जिंदा रखने के लिए ये मेरा दिल धड़कता तो है लेकिन….. मधु का गला रुंध आया। थोड़ी देर दोनों चुप।

दोनों को नेपथ्य की आवाज सुनाई देने लगी। मधु ने फिर थोड़ा अपने आप को संभालकर कहा- पता नहीं सुभम तुमने इतने सालों में मेरे बारे
में क्या-क्या सोचा होगा लेकिन मैं तुम्हें अपने दिल से नहीं निकाल सकी। जब भी मंदिर जाती तो बस यही दुआ माँगती कि मेरा सुभम सही सलामत हो! और तुम्हारी माँगी दुआ भी मुझे सुनाई थी जिसे सिर्फ मैं ही सुन सकती थी- हमेशा खुश रहो मधु! माता रानी तुम्हारे जीवन के सारे दुख मुझे दे दे! तो तुम्हीं बताओ कि मैं कैसे न खुश रहती? इससे पहले कि मधु सुभम के बारे में कुछ भी पूछ पाती कि उसके फोन की
घंटी बज उठी। मधु के पति का ही फोन था। मैं मंदिर पहुँच चुका हूँ। तुम भाँजे को लेकर आ जाओ। मधु एक दम घबराई हुई-सी दौड़ पड़ी
मंदिर की ओर। और ये वर्षों बाद की कहानी फिर अधूरी रह गई!

परिचय :- डॉ. सुभाष कुमार नौहवार
जन्म : ५ फरवरी १९७३
जन्म स्थान : कौलाहर (मथुरा)
निवास : मोदीपुरम (मेरठ) उत्तर प्रदेश।
शिक्षा : एम.ए हिंदी, शिक्षा शास्त्र, इतिहास, बी.एड (पी.एच.डी- निरंतर)
वर्तमान निवास : दोहा क़तर (अरब की खाड़ी)
साहित्यिक परिचय : लेखक- नई स्वाति कक्षा १-८ सरस्वती हाउस पब्लिकेशन, (एस. चाँद पब्लिकेशन) नई दिल्ली। कवि, विचारक, साहित्यकार (ब्लोग राइटर)
कार्य स्थल : वर्ष २००८ से खाड़ी के देशों में हिंदी शिक्षण कार्य में संलग्न। वर्तमान में दोहा मॉडर्न इंडियन स्कूल में बतौर विभागाध्यक्ष हिंदी के रूप में कार्यरत।
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है


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