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पितृ अभिव्यक्ति

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे
मंडला, (मध्य प्रदेश)
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पिता कह रहा है सुनो, पीर, दर्द की बात।
जीवन उसका फर्ज़ है, बस केवल जज़्बात।।

संतति के प्रति कर्म कर, रचता नव परिवेश।
धन-अर्जन का लक्ष्य ले, सहता अनगिन क्लेश।।

चाहत यह ऊँची उठे, उसकी हर संतान।
पिता त्याग का नाम है,भावुकता का मान।।

निर्धन पितु भी चाहता, सुख पाए औलाद।
वह ही घर की पौध को, हवा, नीर अरु खाद।।

भूखा रह, दुख को सहे, तो भी नहिं है पीर।
कष्ट, व्यथा की सह रहा, पिता नित्य शमशीर।।

है निर्धन कैसे करे, निज बेटी का ब्याह।
ताने सहता अनगिनत, पर निकले नहिं आह।।

धनलोलुप रिश्ता मिले, तो बढ़ जाता दर्द।
निज बेटी की ज़िन्दगी, हो जाती जब सर्द।।

पिता कहे किससे व्यथा, यहाँ सुनेगा कौन।
नहिं भावों का मान है, यहाँ सभी हैं मौन।।

पिता ईश का रूप है, है ग़म का प्रतिरूप।
दायित्वों की पूर्णता, संघर्षों की धूप।।

पिता-व्यथा सुन लें ज़रा, करें आज सब गौर।
मुश्किल का चलता सदा, संग पिता, नित दौर।।

परिचय :- प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे
जन्म : २५-०९-१९६१
निवासी : मंडला, (मध्य प्रदेश)
शिक्षा : एम.ए (इतिहास) (मेरिट होल्डर), एल.एल.बी, पी-एच.डी. (इतिहास)
सम्प्रति : प्राध्यापक व विभागाध्यक्ष इतिहास/प्रभारी प्राचार्य शासकीय जेएमसी महिला महाविद्यालय
प्रकाशित रचनाएं व गतिविधियां : पांच हज़ार से अधिक फुचकर रचनाएं प्रकाशित
प्रसारण : रेडियो, भोपाल दूरदर्शन, ज़ी-स्माइल, ज़ी टी.वी., स्टार टी.वी., ई.टी.वी., सब-टी.वी., साधना चैनल से प्रसारण।
संपादन : ९ कृतियों व ८ पत्रिकाओं/विशेषांकों का सम्पादन। एम.ए.इतिहास की पुस्तकों का लेखन
सम्मान/अलंकरण/ प्रशस्ति पत्र : देश के लगभग सभी राज्यों में ७०० से अधिक सारस्वत सम्मान/ अवार्ड/ अभिनंदन। म.प्र.साहित्य अकादमी का अखिल भारतीय माखनलाल चतुर्वेदी अवार्ड (५१०००/ रु.)
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।

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