विजय गुप्ता
दुर्ग (छत्तीसगढ़)
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संवेदना एक पथ, विवेचना रखो दूर
स्वदेश को संभालने, कैसी है विडंबना।सांत्वना मुखर होगी, संतुलन के भार से,
जरूरी है भाई साब, शीघ्र ही संवारना।सहेजकर था रखा, सराहना भाव खोया
गुजरेगा वर्तमान, व्यर्थ फिर सिसकना।सरसता सरकना, सनकना पीर बना,
देश मांगे सदभाव, सोचिए संभावना।सहना ही सिखा गया, संवाद फिजूल हुआ
डरना स्वभाव नहीं, फिर भी डराइए।खतरों को भांपकर, कछुआ छिपाए अंग
अनहोनी यादकर, हाशिये पे जाइए।तो भूलोगे पहचान, अरमान भी जलेगा
दायरे में रहने का, तरीका जताइए।समय की साझेदारी, समंदर को आइना
मान स्वाभिमान संग, भारत को जानिए।
परिचय :- विजय कुमार गुप्ता
जन्म : १२ मई १९५६
निवासी : दुर्ग छत्तीसगढ़
उद्योगपति : १९७८ से विजय इंडस्ट्रीज दुर्ग
साहित्य रुचि : १९९७ से काव्य लेखन, तत्कालीन प्रधान मंत्री अटल जी द्वारा प्रशंसा पत्र
काव्य संग्रह प्रकाशन : १ करवट लेता समय २०१६ में, २ वक़्त दरकता है २०१८
राष्ट्रीय प्रशिक्षक : (व्यक्तित्व विकास) अंतराष्ट्रीय जेसीस १९९६ से
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।
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