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वास्तविकता

राजेन्द्र लाहिरी
पामगढ़
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इंसानियत हैवानियत से
गलबहियां डाले
घूम रहा है गली गली,
इंसाफ मुजरा करने को
एलान करते करते चली,
नैतिकता उल्टियां कर रहे हैं,
करुणा और दया
खास लोगों के घर
सुबह शाम पानी भर रहे हैं,
सहयोग नोटों के सहारे
स्वसहायता खुल के कर रहे हैं,
आस और विश्वास
कोने में बैठकर
दिन रात सिहर रहे हैं,
खेलों में कुर्सियां भाग ले रहे हैं,
पदकों के बजाय
खुशी खुशी दाग ले रहे हैं,
खुशियां पैरों तले कुचला जा रहा,
बदमाशियां अश्लील गाने गा रहा,
जिससे सबको आस है,
कसम से वो खुद निराश है,
भीड़ को फैसला
करने का हो गया हक़,
जिन्हें आत्मविश्वास
से डट कर बोलना था
वो बोलने से क्यों रहा हिचक,
नोट छाप छाप कर
विश्वगुरु बनना है,
व्यवस्था को पता है
किसके आगे कब कब
अकड़ना और तनना है।

परिचय :-  राजेन्द्र लाहिरी
निवासी : पामगढ़
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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