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निकलेगा सूरज

महेश बड़सरे राजपूत इंद्र
इंदौर (मध्य प्रदेश)

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ये रात ही तो है
कब तक रहेगी
निकलेगा सूरज
फिर तो ढलेगी ।।

उम्मीदों से
भरा है आसमान,
आशाओं पर
टिकी है धरती ।
ऐ दुनिया तू छल ले,
कब तक छलेगी ।।
ये रात हि तो है, कब तक रहेगी ।
निकलेगा सूरज, फिर तो ढलेगी ।।

एक सोच पर ही तो
नहीं है पहरा,
ना ही कोई,
रोक-टोक है।
सोच ऊंची रही है,
ऊंची रहेगी ।।
ये रात हि तो है, कब तक रहेगी ।
निकलेगा सूरज, फिर तो ढलेगी ।।

आते हैं दु:ख-दर्द
मुझको परखने,
और जाते है बनाकर
मजबूत मुझे ।
देख लो ध्यान से
ये आंखें ना बही है ना बहेंगी ।
ये रात हि तो है, कब तक रहेगी ।
निकलेगा सूरज, फिर तो ढलेगी ।।

दीवार होंसलों की
हिला नहीं पाए कोई,
पर्वत सी अटल और
वज्र सी प्रबल हो ।
जीगर आग जब जली हो,
किस तरह बुझेगी।
ये रात हि तो है, कब तक रहेगी ।
निकलेगा सूरज, फिर तो ढलेगी ।।

परिचय :- महेश बड़सरे राजपूत इंद्र
आयु : ४१ बसंत
निवासी :  इन्दौर (मध्य प्रदेश)
विधा : वीररस, देशप्रेम, आध्यात्म, प्रेरक, २५ वर्षों से लेखन
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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