हंसराज गुप्ता
जयपुर (राजस्थान)
********************
घर के दीप, संभाल जरा,
कहीं बिजली धोखा दे जाये।
मन्द ताप, बाटी बनती,
भट्टी में सेके, जल जाये,
यात्रा, उडान, श्रम की थकान,
अपने घर में ही उतरे,
घर आंगन की तरुणाई ही,
उर अन्तर की प्यास भरे,
हाथी पागल हो जायें,
पर पिल्लै साथ निभायेंगे,
सांपों को दूध पिलाने वाले,
सर्पदंश ही पायेंगे,
देख भीड को बहको मत,
कहीं खुद का बच्चा खो जाये,
घर के दीप, संभाल जरा,
कहीं बिजली धोखा दे जाये।भाई हो कमजोर कोई,
यदि उनका भार उठायेंगे,
वक्त पडे, किसी कठिन दौर में,
वे ही साथ निभायेंगे,
मेड का कूँचा ऊँचा हो तो,
साख फसल सुख पाता है,
वही श्मशान में खुद जलता,
औरों की चिता जगाता है,
कुश्ती है, कंधे टेको मत,
कोई बाजी कब अपनी ले जाये,
घर के दीप, संभाल जरा,
कहीं बिजली धोखा दे जाये।रंगा सियार बन चहको मत,
चेहरा कब असली दिख जाये,
झूठे केश और छद्म वेष कब
चौराहों पर बिक जायें,
दादी का मटका, नानी की कहानी,
सीख बया कब दे जाये,
ढपोर शंख ज्यों फेंको मत,
निर्धन के प्राण निकल जायें,
उडो गगन में याद रहे यह,
सांझ पडे घर आना है,
सागर की लहरों से खेलो,
नाव किनारे लाना है,
पतवार हाथ की टेको मत,
कहीं अवसर फिर ना मिल पाये,
घर के दीप, संभाल जरा,
कहीं बिजली धोखा दे जाये।
परिचय :- हंसराज गुप्ता, लेखाधिकारी, जयपुर
निवासी : अजीतगढ़ (सीकर) राजस्थान
घोषणा पत्र : प्रमाणित किया जाता है कि रचना पूर्णतः मौलिक है।
आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.com पर अणु डाक (मेल) कीजिये, अणु डाक करने के बाद हमे हमारे नंबर ९८२७३ ६०३६० पर सूचित अवश्य करें …🙏🏻
आपको यह रचना अच्छी लगे तो साझा अवश्य कीजिये और पढते रहे hindirakshak.com राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच से जुड़ने व कविताएं, कहानियां, लेख, आदि अपने चलभाष पर प्राप्त करने हेतु राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच की इस लिंक को खोलें और लाइक करें 👉 hindi rakshak manch 👈… राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच का सदस्य बनने हेतु अपने चलभाष पर पहले हमारा चलभाष क्रमांक ९८२७३ ६०३६० सुरक्षित कर लें फिर उस पर अपना नाम और कृपया मुझे जोड़ें लिखकर हमें भेजें….🙏🏻