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तू शरद के चांद जैसी

शिव चौहान शिव
रतलाम (मध्यप्रदेश)
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तू नदी की
अविरल धारा
मैं उथला-सा पोखर हूं

तू प्रेम की क्लिष्ट भाषा
मैं सरल-सी बोली हूं

तू नयन में सपने बुनती
मैं हकीक़त दर्पण हूं

तू गगन में उड़ती रहती
मैं पगडंडी विचरण हूं

तू शरद के चांद जैसी
मैं ग्रह में मंगल हूं

तू प्रेम गंध महके जैसे
मैं पसीने तर-तर हूं

तू अनुराग है
गीत भ्रमर-सी
मैं कबीर की वाणी हूं।

परिचय :-  शिव चौहान शिव
निवासी : रतलाम (मध्यप्रदेश)
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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