काजल कुमारी
आसनसोल (पश्चिम बंगाल)
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ममता कालिया की कहानियों में स्त्री पात्र अस्तित्वहीन होकर अपने अस्तित्व की तलाश में संघर्ष कर रहे हैं। वर्तमान युग की स्त्रियां पुरुषों के समक्ष ही नहीं बल्कि विभिन्न क्षेत्रों में अपनी पहचान और अपने वजूद को कायम करने के लिए संघर्षरत हैं। सदियों से प्रताडित नारी एक अघोषित युद्ध के के खिलाफ संघर्ष कर रही है। समाज से लेकर परिवार कर तक वे संघर्ष कर रही हैं। और इसी संघर्ष ने उन्हें अपने अंदर एक अभूतपूर्व आत्मविश्वास को जगाया है। नारी जहां इस प्रतिसत्तात्मक व्यवस्था के विरुद्ध संघर्ष कर रही है, वहीं वे मेहनत तथा अदम जिजीविसा के बल पर समाज एवं परिवार में अपने धूमिल पड़े अस्तित्व को एक निखारने के साथ दी साथ एक अलग पहचान दी है।
•स्त्रियों के संदर्भ में स्त्री लेखिकाओं का नजरिया बहुत ही महत्वपूर्ण है।
* सिमोन दा बोउबार – “स्त्रियां पैदा नहीं होती,बनाई जाती है।”१* सुशीला टाककभोरे – “स्त्री सदियों से पुरुष की गुलामी में ठीक उसी तरह जकड़ी रही है । जिस तरह भारत अंग्रेजों की गुलामी में।” २
मानवीय मूल्यों और उनके गुणों की बात करें तो हम देखते हैं कि इस कहानी में ममता कालिया ने जिस खुपसूरती के साथ संवेदनशील, संतुलित समझदार मानवीय आत्मीयता से आलोकित व्याकित्व की झलक , मिलती है। वह उनके नजरिए की साफगोई को रेखांकित करती है। मानवीय मूल्यों के संदर्भ में आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी जी का मानना है कि मनुष्य ही मुख्य है बाकि सभी चीचे गौण है। इससे स्पष्ट होता है कि समाज में मनुष्य की महत्व क्या है।इंसान अपनी इंसानियत से कहीं पर भी पहचाना जाता है , चाहे वह स्त्री हो या पुरुष | एक लम्बे समय के बाद वह बत्रा से मिलती है लेकिन उसके पास उससे बात करने के लिए कुछ नहीं होता है। लेकिन वह उससे बहुत कुछ कहना चाहती है। वह बत्रा है प्रति अपनी इच्छा व्यक्त करना चाहती है। बत्रा इस बात से परिचित होता है लेकिन अंत तक दोनों की खामोशी बनी रहती है। विश्वविद्यालय से निकलने के बाद इस लम्बे समय के अंतराल पर वे दोनों उसी वैंगर्ज में मिलते हैं, जहां वे कभी विश्वविद्याल में पढ़ने के दौरान जाया करते थे। कथानक संक्षिप्त है लेकिन ममता कालिया ने इस कथावस्तु का विस्तार वैंगरज के भीड़–भाड़ के दृश्य का स्वाभाविक वर्णन करके किया है। जिसमें मौलिकता, गंभीरता, जिज्ञासा, सरसता तथा एक अनकही वार्तालाप मिलते हैं।
पात्रों’ पर-चर्चा करते हुए हम देखते हैं कि इस कहानी में केवल मुख्य दो पात्र है- एक बत्रा ओर दूसरी उसकी महिला मित्र। बत्रा का ववभाव बहुत ही जुझार, संवेदनशील, गंभीर तथा हंसमुख है। वहीं उसकी महिला मित्र का स्वभाव शांत, धीर-गंभीर है। और वह बेवजह किसी भी बात को पसंद नहीं करती है। कहानी में एक स्थान ऐसा है जहां इसके स्वभाव को स्पष्ट रूप से समझा जा सकता है–बिना उत्साह के किसी से मिलना ऐसे लगता जैसे “बिना नमक के खाना”। वह अपनी शांत स्वभाव के साथ अपनी इच्छाओं, आकांक्षाको, सपनों, जिज्ञासाओं आदि से जहां अपने व्यक्तित्व की झलक प्रदान करती है, वहीं अपनी अरूचि को दबाकर बत्रा के प्रति अपने प्रेम तथा परिपक्वता का परिचय देती है।
साहित्य और समाज के ताने-बाने को हर युग में उस युग के कर्मठ एवं संवेदनशील लेखक-लेखिकाओं ने यथार्थ के धरातल पर उसका जीवंत चित्रण किये हैं। जहां तक ममता कालिया की बात है, तो उनकी रचनाओं को पढ़ने से ज्ञात होता है कि उनकी कहानियों की नारी पात्रा समाज के सड़ी-गली परंपरागत रुदियों को तोड़कर एक नया बदलाव ला रही हैं। इसी संदर्भ में प्रस्तुत है ममता कालिया की कहानी “कालिया छुटकारा” की समीक्षा। जिसके अंतर्गत शारीरिक एवं मानसिक उत्पीड़न, शोषण, आत्याचार, स्वयं पर होते आ रहे अन्याय के विरुद्ध पूरी तरह से संघर्षरत दिखती है।
छुटकारा कहानी का कथानक सरल होकर भी अत्यन्त महत्वपूर्ण एवं संवेदनशीन है। पूरी कहानी बत्रा तथा उसकी महिला मित्र के ईर्द-गिर्द घूमती रहती है। इस कहानी की कथावस्तु बहुत ही रोचक है। आजाद भारत के पढ़े-लिखे, संघर्षरत तथा बदलते सामाजिक परिस्थितियों का जीता-जागता चित्रण इस कहानी में देखने को मिलता है।
जहां तक कहानी में देशकाल एवं वातावरण की बात है तो इसका सीधा संबंध कहनी के स्थान समय तथा परिवेश से जुड़ा होता है। इस दृष्टि से ‘छुटकारा’ कहानी एक संवेदनशील कहानी कही जा सकती है जो अपने समय के संजीव बातावरण की सृष्टि करता है। कहानी में ममता कालिया ने सत्तर व अस्सी के दशक परिवेश का प अस्सी के दशक के शहरी परिवेश का चित्रण किया है। परिवेश तथा वातावरण उस समय दिल्ली के तत्कालीन समय की वास्तविकता को दर्शाती है। ममता कालिया ने कहानी के वातावरण एवं देशकाल की दृष्टि से सफल बनाया है।
किसी भी रचना का महत्वपूर्ण अंग उस रचना का संवाद होता है। संवाद ही उस कहानी को रोचक एवं गति प्रदान करती है। कहानी में नाटकीयता संवाद के जरिये पैदा किया जाता है। वैसे संवादों के अभाव में भी वर्णनात्मक शैली में किसी भी कहानी को कही जा सकती है, लेकिन स्वभाविक गति, रोचकता तथा नाटकीयता का आभाव साफ-साफ देखा जा सकता है। ‘छुटकारा’ ‘कहनी का संवाद कथानक अनुरूप है। लम्बे समय के बाद किसी अपने से मिलने जाने में जिस अजनबीपन, बेगानानापन का भाव होता है, वह दोनों के संवाद से जान पड़ता है। ममता कालिया ने इस कहानी के कथोपकथन द्वारा तत्कालीन समय की युवा पीढ़ियों के अंतर्द्वंद्व तथा अंतर्कलाह को यथार्थ रूप दिया है। इस दिष्ट से ‘छुटकारा’ कहानी का संवाद सफल माना जा सकता है।
ममता कालिया की सभी कहानियां नारी केंद्रित है । जिसके कारण उनकी कहानियां भाषा की गंभीरता को लिये हुए हैं। लेकिन इस गंभीरता में एक सरलता, सहकता स्वाभाविकता है। जो मन को छू लेती है। कहानी की भाषा में हिंदी के साथ- साथ छुटपुट अंग्रेजी के भी शब्द हैं। क्योंकि कहानी, दो शिक्षित युवाओं से जुड़ी हुई है। ऐसी अवस्था में अंग्रेजी के शब्दों का होना सहज स्वाभाविक जान पड़ता है। शैली की दृष्टि से यह कहानी वर्णनारमक शैली में होते हुए भी संवादात्मकता, मनोविश्लेषणात्मकता एवं चित्रात्मकता को लिये हुए हैं। कुछ स्थाले पर भावात्मक शैली के भी उदाहरण देखने को मिलते हैं। कहानी का अंतिम दृश्य अत्यन्त भावात्मक है।
निष्कर्ष: प्रत्येक साहित्यिक रचना का कोई ना कोई उद्देश्य अवश्य होता है। इस दृष्टि से छुटकारा कहानी में भी कोई अपवाद नहीं है।
इस कहानी का मुख्य उद्देश्य नारी के संघर्ष को दिखाना है । यह संघर्ष उसके बाहर – भीतर दोनों जगह समान रूप से चलता रहता है । इस कहानी का मुख्य उद्देश्य इस बात की अभिव्यक्ति है की नारी होने के कारण उसे अपनी इच्छाओं, जिज्ञासाओं, सपनों को कैसे धूमिल होते हुये देखते हैं। बत्रा की मित्र अपनी अनइच्छा के बावजूद वह बत्रा से मिलने जाती है । हमारे में समाज यह स्त्रियों की स्वाभाविक मनोदशा है। अनइच्छा के विरुद्ध कार्य करता है। चाहे उसमे उसकी मर्जी शामिल हो या नहीं ।संदर्भ ग्रंथ सूची
१. आधार ग्रंथ सूची :– 2015 . 552220.chotkara_chor.html.gz
२. संदर्भ वेबसाइट :– https://www.uok.ac.in
परिचय :- काजल कुमारी
निवासी : आसनसोल (पश्चिम बंगाल)
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।
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