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उपहार

डॉ. प्रणव देवेन्द्र श्रोत्रिय
इंदौर, (मध्यप्रदेश)
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दीपावली की तैयारियों के लिए कमल अनोखीलाल सेठ के बंगले पर रंग बिरंगी झालर लगाने में व्यस्त था। सेठ जी कमल को उचित दिशा निर्देश देकर बगीचे की ताजी हवा का आनंद ले रहे थें।
शालू खेलते-खेलते अपने दादाजी के पास आई। सुंदर गुलाबी रंग के कपड़ों में वह परी-सी लग रही थी। सेठ जी ने उसे-स्नेह से गले लगा लिया। यह देख कमल का दिल भर आया। उसे याद आया की उसकी बेटी पूजा ने भी कहा यहां की “बाबा इस बार तो मुझे अच्छे नये कपड़े दिलवाओंगे ना?” इसी उधेड़बुन में वह कार्य करना भूल गया।
अनोखीलाल-“कमल कार्य समाप्त हो गया क्या?”
“नहीं मालिक थोड़ा-सा ओर बचा है?” शाम को लौटते समय सेठजी ने उसे मेहनताना दिया। कमल धन्यवाद देकर जा ही रहा था कि घर की सेठानी कांशीदेवी ने रोका- “भैय्या ये छोटा-सा उपहार भी लेते जाओ। “कमल प्रसन्न हुआ और शीघ्र घर लौटा। पूजा ने उपहार खोल कर देखा तो उसकी खुशी का ठिकाना नहीं रहा उसमें एक नहीं दो जोड़ फ्रॉक थे।

परिचय :- डॉ. प्रणव देवेन्द्र श्रोत्रिय
शिक्षा : पीएच.डी, एम.ए हिन्दी साहित्य, बी.जे.एम.सी, आयुर्वेद रत्न।
निवासी : इंदौर, (मध्यप्रदेश)
रुचि : लेखन,पठन,पर्यटन
प्रकाशन : विभिन्न पत्र, पत्रिकाओं में नियमित बाल कहानी, लघुकथा, कविता का प्रकाशन।
सम्प्रति : निजी महाविद्यालय में हिन्दी भाषा में सहा.प्राध्यापक।
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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