Monday, December 23राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर आपका स्वागत है... अभी सम्पर्क करें ९८२७३६०३६०

श्राद्ध से श्रद्धा तक

सरला मेहता
इंदौर (मध्य प्रदेश)
********************

जब तक जीवित हैं…हम प्रतिवर्ष अपना जन्मदिन मनाते हैं। हाँ, मनाने के तरीके भले प्रथक हो। किन्तु हम यह एहसास नहीं भूलते कि जीवन का एक वर्ष कम हो गया। यह हमारी भारतीय परंपरा है कि मृत्योपरांत भी हम अपने परिजनों को भुला नहीं पाते। उनकी स्मृति बनी रहे… इस हेतु श्राद्ध करते हैं।
कहने को यह एक धार्मिक अनुष्ठान है किंतु इसके साथ भावनाएँ भी जुड़ी हैं।
अनन्त चतुर्दशी पर गजानन की विदाई के पश्चात पूर्णिमा से श्राद्ध आरम्भ हो जाते हैं। इन्हें सौलह श्राद्ध भी कहते हैं। मृत्युतिथि अनुसार श्राद्ध करते हैं। स्वच्छता व विधिविधान से किसी ब्राह्मण को भोजन हेतु न्यौता जाता है। किंतु पण्डित लोगों को भी कुछ विशेष अवसरों पर ही पूछा जाता है। सही है कि दक्षिणा के लालच में कइयों का आग्रह मान लेते हैं। थोड़ा बहुत ग्रहण कर अगले यजमान के यहाँ पहुँच जाते हैं। इतनी मेहनत से बनाया खीर, लड्डू, रायता, सब्जी, पूरी और साथ में स्वर्गवासी व्यक्ति की पसंद का खास पकवान। ऐसे में उनके पूरे परिवार के लिए भोजन पैक कर दें। कोई भी भूखा तृप्त हो जाए, क्या फ़र्क पड़ता है। फिर भी श्राद्ध करने में हमारी श्रद्धा बरकरार रहे। इस तरह हमारी नई पीढ़ी भी अपने पूर्वजों से जुड़ी रहती है। कुछ अपवादों को छोड़कर कई पण्डित अपने कर्तव्यों के प्रति ईमानदार रहते हैं। पूरी धार्मिक क्रियाओं को सम्पन्न कराते हैं। क्या अन्य नौकरियों में सभी कर्मचारी दूध के धुले होते हैं। फ़िर यह मृतात्माओं की तर्पण क्रिया होती है।
पंडितों में भी धार्मिक आस्थाएँ होती हैं। वे भी उनके प्रति कृतसंकल्प होते हैं। हम स्वयं से ही पूछकर देखे कि क्या किसी कार्य में हम अपना भला नहीं देखते? आजकल लोग वृद्धाश्रम अनाथालय आदि में इस दिन दान करना श्रेष्ठ मानते हैं। कई अस्पताल विद्यालय धर्मशाला मन्दिर आदि बनवाते हैं। इस दिन मृतात्मा की याद में पौधारोपण भी करते हैं। साथ ही गाय, कुत्ते व काग को भी खिलाने की प्रथा है। यह पर्यावरण के प्रति लगाव की ओर भी इंगित करता है।
एक ढकोसला या अंधविश्वास के नाम श्राध्द करना ठीक नहीं।
श्राद्ध के साथ हमारी श्रद्धा जुड़ी हो। यह नहीं कि जीते जी तो हम अपने बुजुर्गों को भोजन वस्त्र आदि के लिए तरसाते रहे। उनके बाद
दिखावे के लिए पानी की तरह पैसा बहाते हैं। खजराना मन्दिर इंदौर में प्रतिदिन भोजनशाला चलती है। जो भी चाहे यहाँ जन्मदिन आदि किसी भी उत्सव के नाम दान करते हैं। इसी तरह मृत्युदिवस हेतु भी प्रक्रिया का प्रावधान है। सभी प्रिय व रिश्तेदारों के नाम वहॉं उस दिन दर्ज़ होते हैं। समय सीमा में जो भी श्रद्धालु आते हैं, वहाँ भरपेट भोजन करते हैं। दानदाता लोग स्वयं परोसने आदि में सहायता करते हैं। ऐसा कई स्थानों पर होने लगा है। श्रद्धा से श्राद्ध करना यानी परंपराओं से जुड़ाव ही नहीं है वरन अपनों के प्रति श्रद्धांजलि भी है। एक मुगल बादशाह तक ने अपने बेटे से कहा था कि हिंदु बेटे मरने के बाद भी पिता को प्यासा नहीं रखते।

परिचय : सरला मेहता
निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश)
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।


आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.com पर अणु डाक (मेल) कीजिये, अणु डाक करने के बाद हमे हमारे नंबर ९८२७३ ६०३६० पर सूचित अवश्य करें …🙏🏻

आपको यह रचना अच्छी लगे तो साझा अवश्य कीजिये और पढते रहे hindirakshak.com राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच से जुड़ने व कविताएं, कहानियां, लेख, आदि अपने चलभाष पर प्राप्त करने हेतु राष्ट्रीय  हिन्दी रक्षक मंच की इस लिंक को खोलें और लाइक करें 👉 👉 hindi rakshak manch  👈… राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच का सदस्य बनने हेतु अपने चलभाष पर पहले हमारा चलभाष क्रमांक ९८२७३ ६०३६० सुरक्षित कर लें फिर उस पर अपना नाम और कृपया मुझे जोड़ें लिखकर हमें भेजें…🙏🏻

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *