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यूँ ना बदला करो

डॉ. दीपा कैमवाल
दिल्ली
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मौसम की तरह आप
यूँ ना बदला करो
आ जाओ लौटकर
अब यूँ ज़िद्द ना करो।।

हो रही देर अब
यूँ न रुसवा करो
मुँह से कुछ तो कहो
चाहे शिक़वा करो।

मुखातिब हूँ मैं
तेरी मजबूरियों से
ना चाहकर भी हैं
दरमियाँ जो
उन दूरियों से।

काली ज़ुल्फ़ों में
बिखर आई है
अब चांदनी
जाने से पहले
हाले बयां कुछ करो।

दे जाए सुकूं
ऐसा कुछ तो कहो
आती-जाती सांसों से
छल अब ना करो।

इम्तिहां हो गयी
अब तो आके मिलो
दिल-ए-नाचीज़ से
आज कुछ तो कहो।

जो दिया था
कभी तुम्हे वक़्त
उसकी कद्र
कुछ तो करो
मौसम की तरह
यूँ ना बदला करो…..

छोड़ो जाओ हमे
बात करनी नहीं
आपका होना नहीं
आपमें जीना नहीं
अब मुलाक़ात की
आरज़ू करनी नहीं।

है बदल जो गया
उसमें खोना नहीं
उसमें जीना नहीं
उसमें मरना नहीं
भूलकर भी उसे
याद करना नहीं।

प्रेम पर लिख दिए
चंद शब्द मैंने भी आज
दर्द और पीर का गढ़ दिया
अक्स मैंने भी आज
गीत अंदर से उमड़ा है
देखो तो आज।

परिचय :-  डॉ. दीपा कैमवाल
निवासी : दिल्ली
सम्प्रति : सहायक प्राध्यापक दिल्ली विश्वविद्यालय
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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