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नारी का महत्व

धर्मेन्द्र कुमार श्रवण साहू
बालोद (छत्तीसगढ़)
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जब मैंने जनम लिया,
वहां एक *नारी* थी।
जिसने मुझे थाम लिया,
वो *जननी महतारी* थी।।

जैसे-जैसे मैं बढ़ा हुआ,
वहां भी एक *नारी* थी।
खेली कूदी और मदद की,
वो मेरी *बहन* प्यारी थी।।

बड़ा हो करके शाला गया,
वहां भी एक *नारी* थी।
पढ़ाई लिखाई खूब करायी,
*शिक्षिका* भविष्य सॅंवारी थी।।

जब भी मैं निराश हुआ,
वहां भी एक *नारी* थी।
जीवन से मैं कभी ना हारा,
*महिला मित्र* न्यारी थी।।

प्रेम की आवश्यकता पड़ी,
वहां भी एक *नारी* थी।
हमेशा जीवन साथी रही,
*धर्म पत्नी* परम प्यारी थी।।

जब भी गोद में हलचल हुई,
वहां भी एक *नारी* थी।
मेरे व्यवहार को नरम किया,
वो मेरी *बेटी* दुलारी थी।।

नौ दिन में नौ रुप उजियारे,
वहां भी एक *नारी* थी।
नौ रात्रि में नौ स्वरुप सॅंवारे,
*दुर्गा* शेर पे सवारी थी।।

जीवन की कला सबने गढ़ी,
वहां भी एक *नारी* थी।
पैनी लेखनी से दुनिया सॅंवारी,
सर्वगुण संपन्न *महतारी* थी।।

हम दुनिया से चले जाएंगे,
वहां भी एक *नारी* होगी।
अपनी गोद में हमें समा लेगी,
*धरती मैय्या* प्यारी होगी।

आओ नारी का सम्मान करें,
कतई नारी का अपमान नहीं।
अब सोये हुए जन जाग जाओ,
धरम करम का वरदान यही।।

परिचय :- धर्मेन्द्र कुमार श्रवण साहू
निवासी : भानपुरी, वि.खं. – गुरूर, पोस्ट- धनेली, जिला- बालोद छत्तीसगढ़
कार्यक्षेत्र : शिक्षक
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।


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