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गहरे अँधियारे

भीमराव झरबड़े ‘जीवन’
बैतूल (मध्य प्रदेश)
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श्रद्धा का विषवर्धक दरिया,
तोड़ रहा नित नर्म किनारे।
स्वच्छ पुलिन को निक्षेपण में,
सौंप रहा गहरे अँधियारे।।

छल के पाँसे लेकर बैठी,
मैले मन की मथुरा काशी।
पाप-पुण्य की ले दोधारी,
हरिद्वार हो गया विनाशी।

यहाँ लगाती साँझ सबेरे,
भूख निमज्जन कर जयकारे।।

क्रत्रिम दिनकर ने ही की है,
ऊँच-नीच की हेराफेरी।
पोथी के पन्ने-पन्ने पर,
छल-छंदों ने जीत उकेरी।।

अधनंगे मजरे-टोले के,
हिस्से आये आँसू खारे।।

सुप्त देह में चेतनता की,
जब-जब उठती रही तरंगें
जितने बिल से बाहर निकले,
उतनी गहरी हुई सुरंगें।।

रक्त-बीज से उगते परचम,
जिह्वा पर रखते अंगारे।।

परिचय :- भीमराव झरबड़े ‘जीवन’
निवासी : बैतूल मध्य प्रदेश
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।

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