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दशहरा

प्रमेशदीप मानिकपुरी
भोथीडीह, धमतरी (छतीसगढ़)
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दस विकारो को जीत बढ़ चले प्रगति पथ पर
जीत सार्थक तब, जब अछून्न रह सके जीत पर
जब मरे विचारों का रावण तब दशहरा आयेगा
जीवन की बगिया को संस्कारो से महकायेगा

संकल्प लेंगे नहीं हटेंगे अच्छाई की राह से
दूर ही रहेंगे काम, क्रोध व लालच की चाह से
पवित्र हो विचार तो स्वाभिमान जाग जायेगा
जीवन की बगिया को संस्कारो से महकायेगा

सत्कर्म की राह पर चलकर पायेंगे लक्ष्य को
कर्म करके बताएँगे, जीवन के सब साक्ष्य को
कर्मो से ही जीवन मे नित नया सवेरा आयेगा
जीवन की बगिया को संस्कारो से महकायेगा

मन के गलियारे मे सज्जनता का होगा बसेरा
अरमानो का नित होता हो जहाँ सुखद सवेरा
ऐसे नर ही जग मे लक्ष्मी नारायण बन पायेगा
जीवन की बगिया को संस्कारो से महकायेगा

राम बनना है तो राम सा चरित्र बनाना होगा
भीतर के रावण को खुद ही हमें मिटाना होगा
तभी इस जीवन मे सुखद दशहरा आ पायेगा
जीवन की बगिया को संस्कारो से महकायेगा

परिचय :- प्रमेशदीप मानिकपुरी
पिता : श्री लीलूदास मानिकपुरी
जन्म : २५/११/१९७८
निवासी : आमाचानी पोस्ट- भोथीडीह जिला- धमतरी (छतीसगढ़)
संप्रति : शिक्षक
शिक्षा : बी.एस.सी.(बायो),एम ए अंग्रेजी, डी.एल.एड. कम्प्यूटर में पी.जी.डिप्लोमा
रूचि : काव्य लेखन, आलेख लेखन, विभिन्न कार्यक्रम में मंच संचालन, अध्ययन अध्यापन
कार्य स्थल : शासकीय माध्यमिक शाला सांकरा
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।

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