विजय गुप्ता
दुर्ग (छत्तीसगढ़)
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बंदर गुण पर नजर थी, जो गिनती में तीन।
गांधी अनुयायी सही, लाख बजा लो बीन।।साथ रखे वो घूमते, व्यापक था प्रभाव।
एक सदी से दिख रहा, बहुत विचित्र स्वभाव।।गलत देख कर गुम हुए, पाए जो संस्कार।
पट्टी आंख पर है चढ़ी, हो रहा व्यभिचार।।व्यर्थ वानर अब खड़ा, पनप रहे कुविचार।
अभिभावक के सामने, बिगड़ रहा परिवार।।छठी इंद्रिय तेज है, असमंजस कपिराज।
गांधी तेरे देश में, अखर रहे हैं काज।।हम कानों से क्या सुनें, सुनती जब दीवार।
कर्ण कपि खुद नाच रहा, अनर्थ मय तकरार।।सुनना भी पसंद नहीं, सुंदर भी जब बोल।
वानर थाम रहे तुला, कैसे खोलें पोल।।बड़बोला मानव हुआ, एक रहे नित काम।
मुख पट्टी भी कपीश की, कचरा गई तमाम।।गांधी के बंदर पले, बहुत बरस की भोर।
जीवनकाल खत्म हुआ, चलन दूर का शोर।।
परिचय :- विजय कुमार गुप्ता
जन्म : १२ मई १९५६
निवासी : दुर्ग छत्तीसगढ़
उद्योगपति : १९७८ से विजय इंडस्ट्रीज दुर्ग
साहित्य रुचि : १९९७ से काव्य लेखन, तत्कालीन प्रधान मंत्री अटल जी द्वारा प्रशंसा पत्र
काव्य संग्रह प्रकाशन : १ करवट लेता समय २०१६ में, २ वक़्त दरकता है २०१८
राष्ट्रीय प्रशिक्षक : (व्यक्तित्व विकास) अंतराष्ट्रीय जेसीस १९९६ से
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।
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