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स्वावलंबन

डॉ. किरन अवस्थी
मिनियापोलिसम (अमेरिका)

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इतना भी इन्सान स्वावलम्बी न हो जाए
कि दीन दुनिया को जीवन के मूल्यों को भूल जाए
कि परवरिश परिवार की, घरबार को भूल जाए
मित्रों का आना, पड़ोसी का मुस्कुराना
स्नेह का बंधन ही टूट जाए

कामना की पूर्ति में इतना न मग्न हो जाए
कि घर की सुरक्षा,nआँगन की देहरी
संवेदना की झोली, मित्रों की टोली
रिश्तों की डोरी को भूल जाए

केवल स्वयम् में इतना न डूब जाए
कि नैतिकता का दामन, अनुशासन की सीमा
बुज़ुर्गों की चाहत, अपनों की आहट,
नन्हों की झप्पी, बच्चों का बचपन वो भूल जाए

नदियों की कलकल, वर्षा की रिमझिम
मुस्कान कलियों की, भौंरों का गुंजन
भोली सी सूरत, मेहनत की सीरत
कुनबे के माली की हैसियत न भूल जाए

चिडियों की चहक, फूलों की महक
झरनों की कलकल, लताओं की झिलमिल
मेघों का गर्जन, दामिनी की तड़पन
जाड़ों की गुनगुनी न धूप भूल जाए

वैभव का आकर्षण,दिखावे का भोलापन
इतना न लाँघ जाए
कि इंद्रियों का शमन, विचारों का उदात्तपन
भावों की गहराई न भूल जाए
इंसान इतना भी स्वावलंबी न हो जाए।

परिचय :- डॉ. किरन अवस्थी
सम्प्रति : सेवा निवृत्त लेक्चरर
निवासी : सिलिकॉन सिटी इंदौर (मध्य प्रदेश)
वर्तमान निवासी : मिनियापोलिस, (अमेरिका)
शिक्षा : एम.ए. अंग्रेजी, एम.ए. भाषाविज्ञान, पी.एच.डी. भाषाविज्ञान
सर्टिफिकेट कोर्स : फ़्रेंच व गुजराती।
पुनः मैं अपने देश को बहुत प्यार करती हूं तथा प्रायः देश भक्ति की कविताएं लिखती हूं जो कि समय की‌ मांग भी‌ है। आजकल देशभक्ति लुप्तप्राय हो गई है। इसके पुनर्जागरण के लिए प्रयत्नशील हूं।
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।


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