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बिटिया

संगीता सूर्यप्रकाश मुरसेनिया
भोपाल (मध्यप्रदेश)

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बिटिया तू है, अपने।
परिवार की राजकुमारी।
तू परिवार की राजदुलारी।
तू आज बगिया की सुंदर।
कली सम कल तू तरूणी।

आज तू कली सम देवकन्या।
रूप धर धरा पर आई।
तू है परमपिता परमात्मा।
प्रदत्त अद्भुत रचना।
बिटिया तेरे रूप अनेक।

बिटिया इस धरा पर जब भी।
कोई तुझे कुत्सित भाव।
संवाद करें या कुदृष्टि डाले।
तो तू ऐसे दुष्कर्म करने वाले।
दुष्टो का संहार करने के लिए।

तत्काल तू काली अरू
रक्तदंतिका बन जाना।
बिटिया तू ईश्वर की रचना हैं ।
तू कोमलांगी हैं परंतु जब।
विषम परिस्थिति में लज्जा।

संकट में हो तब दुष्टों का
सर्वनाश कर देना।
कुकर्म करने वाले दुष्टों को।
निसंकोच अस्त्र-शस्त्र से काट।
देना तनिक संकोच मत करना।
तू आज की अबला नारी नहीं।

आज की सबला नारी है।
बिटिया तू ही दुर्गा, तू ही काली।
तू ही जगदंबा, तू ही सरस्वती।
बिटिया सारे रूप तेरे ही है।
परिस्थिति अनुकूल तू जो।

चाहे रूप धर, परंतु इस धरा।
पर आत्मरक्षा उमंग संग।
आत्मविशवास अपने अंतस।
जगा जग में जीवन यात्रा।
निर्भय हो सुन्दर जीवन बिता।

परिचय :- श्रीमती संगीता सूर्यप्रकाश मुरसेनिया
निवासी : भोपाल (मध्यप्रदेश)
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।


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