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जब-जब मेरी कलम ने…

प्रभात कुमार “प्रभात”
हापुड़ (उत्तर प्रदेश)

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जब-जब मेरी कलम ने
दर्द ए इंसानियत लिखा
हैवानियत छटपटाने लगी
दरिंदगी का दम घुटने लगा।
ईर्ष्या स्वयं से जलने लगी
नफरतों का नाश होने लगा।
जब-जब मेरी कलम ने
दर्द ए इंसानियत लिखा
रुढियाँ रोने लगी
घृणा स्वयं से घृणित होने लगी
पाखंड पांव पीटने लगा।
जब-जब मेरी कलम ने
दर्द ए इंसानियत लिखा
रूहें सिसकियाँ भरने लगीं
आंसुओं की बारिश होने लगी
हर पत्थरदिल पिघलने लगा
जब-जब मेरी कलम ने
दर्द ए इंसानियत लिखा
वैमनस्य की कालिमा छंँटने लगी
मानो गंदगियाँ दिलों की धुलने लगी
अंधकार अमावस्या की रात्रि का लुप्त होने लगा
नभ-जल-थल में सूर्य का
प्रकाश प्रकाशित होने लगा
हर हृदय पटल पर
प्रेम और विश्वास का आह्लाद होने लगा।
जब-जब मैंने
दर्द ए इंसानियत लिखा।

परिचय :-  प्रभात कुमार “प्रभात”
निवासी : हापुड़, (उत्तर प्रदेश) भारत
शिक्षा : एम.काम., एम.ए. राजनीति शास्त्र बी.एड.
सम्प्रति : वाणिज्य प्रवक्ता टैगोर शिक्षा सदन इंटर कालेज हापुड़
विशेष रुचि : कविता, गीत व लघुकथा (सृजन) लेखन, समय-समय पर समाचारपत्र एवं पत्रिकाओं में रचनाओं का निरंतर प्रकाशन।
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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