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किसी का हमदर्द बने

प्रमेशदीप मानिकपुरी
भोथीडीह, धमतरी (छतीसगढ़)
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दर्द बढ़ जाता है तो सीने मे हूक सी उठती है |
तन्हाई का आलम भी तब नागिन सी डसती है ||

दर्द की अहसास भी अजीब सुकून देता है |
जो पास ना हो उसका भी अहसास देता है ||

दर्द को महसूस कर उसे बाँटने से घटती है |
दुख के बादल फिर तो धीरे-धीरे छटकती है ||

आओ दर्द बाँट कर एक दूजे का सहारा बने |
दर्द संग जीने मरने के नये नये अफ़साने बने ||

एक दूजे को सम्बल दे जीने का अधिकार दे |
दर्द मिटा कर एक दूजे को आदर एवं प्यार दे ||

दर्द का नाम अमर है इश्क के हर इम्तिहान मे |
दर्द तो मिलेगा ही दिल जला हो अगर प्यार मे ||

दर्द मे जीना,दर्द मे मरना,दर्द भी अहसास है |
दर्द का जीवन से रिश्ता गहरा और खास है ||

दर्द मे किसी का हमदर्द बने भुलाकर क्लेश |
अब दर्द मे जीवन जीना सीखना पड़ेगा प्रमेश ||

परिचय :- प्रमेशदीप मानिकपुरी
पिता : श्री लीलूदास मानिकपुरी
जन्म : २५/११/१९७८
निवासी : आमाचानी पोस्ट- भोथीडीह जिला- धमतरी (छतीसगढ़)
संप्रति : शिक्षक
शिक्षा : बी.एस.सी.(बायो),एम ए अंग्रेजी, डी.एल.एड. कम्प्यूटर में पी.जी.डिप्लोमा
रूचि : काव्य लेखन, आलेख लेखन, विभिन्न कार्यक्रम में मंच संचालन, अध्ययन अध्यापन
कार्य स्थल : शासकीय माध्यमिक शाला सांकरा
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।

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