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उस हसीं को मरते हजार बार देखता हूँ

देवप्रसाद पात्रे
मुंगेली (छत्तीसगढ़)

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कभी खुशियों की बौछार देखा था
आज उन आँखों में
आंसुओं की अम्बार देखता हूँ।
न जाने कितनी ठोकरे खाई है,
आज उस हसीं को मरते
हजार बार देखता हूँ।।

पूछा-वो तुम्हारा मुस्कराता
चेहरा कहाँ गया?
हँसता-खेलता और हरा-भरा
घर कहाँ गया?
छन-छन करती पायल की
झनकार कहाँ गई?
वो मीठी नोक-झोंक वाला
प्यार कहाँ गया?
वो खिलखिलाती हँसी,
जीने की नए अंदाज को
आज गुमसुम और
उदास देखता हूँ।
न जाने कितनी ठोकरे खाई है,
आज उस हसीं को मरते
हजार बार देखता हूँ।।

पलकें झुकाए सुना गौर से
फिर बोली यार।
क्या कहें इश्क़बाजी का
छाया था खुमार।।
पाल रखी थी उम्मीदें एक
छोटी सी दुनियां बसाने की।
हमदम साथ मिल कर एक
नई पहचान बनाने की।।
वो हरदम जुल्म ढाता रहा
मैं सहती रही।
वो धोखे का और मैं प्रेम का
बीज बोती रही।
उनके हर सितम का
घूंट पीती रही।
भीड़ में हँसती रही पर
खुद से रोती रही।।
कभी खुशियों से भरा था
उसका दामन
अब उजड़ता हुआ उसका
संसार देखता हूँ।
न जाने कितनी ठोकरे खाई है,
आज उस हसीं को मरते
हजार बार देखता हूँ।।

करके इश्क़ गुनाह कर
बैठा ऐ दिल ए नादान,
ख्वाहिशें रही नहीं अब जीने की।
दर्द ए आलम दिन में
चैन न रात सुकून है,
बस! रह गया काम
गम पीने की।।
राग रंग से खुशहाल था
जिनका घर-आंगन कभी।
उस बगिया की उजड़ते
बहार देखता हूँ।
न जाने कितनी ठोकरे खाई है,
आज उस हसीं को मरते
हजार बार देखता हूँ।।

कभी चमकती थी आंखों में
आज सवाल हजार है।
सुकून से धड़कती थी दिल में
आज खंजर आर-पार है।।
दर्द के घूंट कैसे पीया जाए?
इस हाल में कैसे जीया जाए?
चुन-चुन तिनके कैसे
बनाया था घोंसला
उस घर को आज
बहते धार देखता हूँ
न जाने कितनी ठोकरे खाई है,
आज उस हसीं को मरते
हजार बार देखता हूँ।।

परिचय :  देवप्रसाद पात्रे
निवासी : मुंगेली, (छत्तीसगढ़)
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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