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वो खत कहाँ गए?

महेन्द्र साहू “खलारीवाला”
गुण्डरदेही बालोद (छत्तीसगढ़)
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सप्ताह, महीनों का होता था बड़े सिद्दत से मीठा इंतजार।
दौड़ पड़ते, सुन डाकिया के, साइकिल की घण्टी की गुहार।
प्रेयसी की जिसमें होती थी बेबसी, विरह वेदना।
प्रियतम के वापसी का होता था हरपल इंतजार।
सच में कोई तो बताओ वो खत कहाँ गए?

प्रेयसी को लुभाने होती थी प्यार भरी वो बातें।
यादों ही यादों में होती मिलन की वो सौगातें।
एक दूजे संग जीने मरने के होते थे कसमें वादे।
सात जन्मों तक साथ निभाने की होती थी बातें।
सच में कोई तो बताओ वो खत कहाँ गए?

छुपा होता था जिसमें अपनों से अपनों का प्यार।
कागज़ के पन्नों पर होता था दर्द ए दिल बेशुमार।
जिसमें हाल ए दिल लिखा होता था।
हर शब्द में ही उनका चेहरा दिखता था।
सच में कोई तो बताओ वो खत कहाँ गए?

बहना ने भेजा है लिखकर खत, भैया को रक्षा सूत्र।
भ्राता ने लिखा, भैया तुम मेरे,तुम ही हो मेरे मित्र।
जिसमें होती थी माँ की ममता, प्यार, दुलार।
पिता का होता था जिसमें आशीर्वाद भरमार।
सच में कोई तो बताओ वो खत कहाँ गए?

शरहद पर तैनात बेटे का होता था दृढ़ विश्वास।
जंग ए मैदान से लौटकर परिवार मिलन की आस।
लिखी होती थी, तिरंगे में लिपटे हुए बेटे के शहादत की गाथा।
सुन गाथा, माता-पिता का फ़क्र से, सीना चौड़ा हो जाता।
सच में कोई तो बताओ वो खत कहाँ गए?

परिचय :-  महेन्द्र साहू “खलारीवाला”
निवासी –  गुण्डरदेही बालोद (छत्तीसगढ़)
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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