तेज कुमार सिंह परिहार
सरिया जिला सतना म.प्र.
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प्रथम भाग
जेठ बैसाख के दिन गर्मी अपने चरम परम पर थी। घर के काम करते-करते उर्मिला बाहर किसी की आवाज सुन किवाड़े की दराज से झांका, देखा एक साधु महाराज गली में ‘भगवान के नाम पर कुछ देने का आग्रह करते हुए चले जा रहे थे। प्रायः फसल काटने के बाद गांवों में साधु संत, नट मदारी आदि का आना नदी में बाढ़ की तरह हो जाता है, पेट के लिए तरह-तरह के चेतक दिखाते है वैसे तो बहुत साधु आते है इस गांव में पर इस साधु की बात कुछ अलग थी। किसी के दरवाजे के पास नही रुक रहे थे। रुकिए महाराज अरे सुनिए न, कहते हुए उर्मिला एक टोकरी में कुछ अनाज लेकर बाहर निकली पीछे से आवाज सुन साधु महाराज ठहर गए।
ला माई इस झोली में डाल दो हमेशा खुश रहो तेरे बल बच्चे बने रहे बाबा ने आशीषों की झड़ी लगा दी, अरे माई तुम रो रही हो। उस स्त्री ने कोई जवाब नही दिया बस आँसू पोछने के लिए पल्लू चेहरे लगा लिया साधु दयालु थे सांत्वना के कुछ शब्द बोले पर वो स्त्री कुछ कहने के बजाय साधु बाबा को इशारे से घर चलने का आग्रह किया, बाबा ने कहा माई हम किसी के दरवाजे नही जाते है पर चलो आपके दरवाजे बाबा जरूर जाएगा।
बोल माता क्या बात है क्यो दुखी हो उस स्त्री ने बिना उत्तर दिए घर के अंदर से साधु के लिए खाने लिए दूध और राब लेकर आई बोली बाबा पहले आप जल ग्रहण कीजिये। जलपान कर बाबा ने दुखी होने का कारण पूछा रोते हुए उस स्त्री ने बोलना शुरू किया बाबा मेरे दो पुत्र है छोटे वाले कि बीमारी कभी जाती नही एक न एक लगा रहता है, इससे पहले दो पुत्र एक बेटी को खो चुकी हूं बहुत इलाज कराया वैद्य जी से पर कोई लाभ नही पुत्र को लेकर आओ माई, इसने सुनते ही बेटे को गोद मे लेकर आ गयी बीमारी के कारण दुबला पतला केवल मुह और पेट दिख रहा था हाथ पैर सिरकी जैसे पतले हो गए थे। साधु बाबा ने बेटे को अपनी गोद मे लेकर कहा चिंता मत करो माई तुम्हारा बेटा ठीक हो जाएगा ये पुत्र आपके परिवार का नाम रोशन करेगा प्रतिभा शाली होगा जो भी मन मे ठान लेगा करके रहेगा पर माई।
उस स्त्री का कलेजा धक से हुआ और बोली पर क्या बाबा ! साधु ने कहा घबराएं नही माता कोई अनिष्ट न होगा किन्तु इस पुत्र की सेवा तेरे भाग्य में नही लिखी है कुछ ही वर्षों में तुम से दूर चला जायेगा उसके बाद वही का होकर रह जायेगा किन्तु हमेसा तेरे से मिलने आया करेगा।
बाबा जहां भी रहे नीकें से रहे न करे मेरी सेवा न सही पर ये सुखी रहे।
बाबा ने बेटे को उसकी माँ की गोद मे देकर कहा मेरी दक्षिणा दो बाबा अब चलेगा। उस स्त्री ने बाबा को मुड़ा तुड़ा दो रुपये का नोट दिया बाबा ने आशीर्वाद दिया जैसे ही चलने लगा, उस स्त्री ने कहा बाबा भोजन करके जाए, नही माई भोजन हम आपके हाथ करेंगे पर आज नही साल भर बाद पुनः मैं आऊँगा तुम्हारा लल्ला ठीक हो जाएगा तब।
साधु चला गया उर्मिला की ननद ने बाबा को पैसे देते देख लिया था, व्यंगात्मक लहजे में उर्मिला को सुना कर बोली, बहि-बहि मरय बैलवा बांधे खाय तुरंग, मोर भाई दिन रात कोल्हू के बैल की तरह जोतता है महारानी जिसको देखो दान लुटाती रहती है। उर्मिला को ननद की बाते बहुत दुखित कर रही थी किन्तु बहुत ही सधे लहजे में बोली बॉबी मेरा बेटा ठीक हो जाएगा तो ये पैसे सुआर्थ में आ जायेगा भगवान बाबा की कही बातें सही करेंगे।
हाँ-हाँ बहुत देखा है ऐसे साधु लूटने खाने आ जाते है इतने ही पहुंचे हुए हो तो क्या गली-गली मारे फिरे। ननद बोलती रहीं पर उर्मिला सोच कर खुस हो रही थी साधु बाबा अवश्य ही बहुत बड़े महात्मा है किसी से कुछ मांगते नही उनकी बात जरूर सत्य निकलेगी ८ माह के अपने पुत्र को सीने से लगा लिया रोम-रोम पुलकित हर्षित हो गया अबोध बालक माँ की छाती से लग जीवन अमृत का पान करने लगा।
क्रमश……
पिता : स्व. श्री चंद्रपाल सिंह
निवासी : सरिया जिला सतना म.प्र.
शिक्षा : एम ए हिंदी
जन्म तिथि : ०२ जनवरी १९६९
जन्मस्थान : पटकापुर जिला उन्नाव उ.प्र.
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