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पिता आसमा से ऊँचे

अंजनी कुमार चतुर्वेदी
निवाड़ी (मध्य प्रदेश)
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सारी दुनिया यही मानती,
है जग में सुख भारी।
फिरती है हरदम तलाश में,
मृगतृष्णा की मारी।

सदा सर्वदा झूठा है जग,
संत महंत बताते।
कठिन गृहस्थी है जीवन की,
ऋषि मुनि पार न पाते।

मानव की विसात ही क्या है,
ऋषि मुनि समझ ना पाए।
है जीवन भी जटिल पहेली,
ज्ञानवान सुलझाए।

जब सारा घर खुश होता है,
सबको लगता प्यारा।
घर की शोभा माँ से होती,
माँ का आँचल न्यारा।

माँ की ममता है सागर सी,
पिता आसमा जैसा।
छाँव मिले माँ के आँचल की,
दुनिया में सुख कैसा।

जब माँ का साया उठ जाता,
वीरानी छा जाती।
बच्चों सहित पिता के ऊपर,
भी आफत आ जाती।

लिए बज्र सी छाती दिनभर,
पिता रात को आते।
बच्चों के मुख देख पिता ही,
खुद माता बन जाते।

रुचिकर भोजन बना बना कर,
बच्चों को देते हैं।
करते लाड़ दुलार, उठा फिर,
गोदी में लेते हैं।

इधर उधर से आकर बच्चे,
माँ घर में ना पाते।
दुनिया के सारे सुख घर में,
उन्हें रास ना आते।

लोरी गाकर पिता सुलाते,
फिर भी नींद ना आती।
माँ का आँचल, मीठी बातें,
यादें बहुत सताती।

माँ तो प्यारी माँ होती है,
है अनमोल धरोहर।
पिता आसमा से भी ऊँचे,
माँ है प्रेम सरोवर।

रहे हमेशा साथ पिता का,
नील गगन सा साया।
माँ का साथ कभी न छूटे,
छूटे कंचन काया।

परिचय :अंजनी कुमार चतुर्वेदी
निवासी : निवाड़ी (मध्य प्रदेश)
शिक्षा : एम.एस.सी एम.एड स्वर्ण पदक प्राप्त
सम्प्रति : वरिष्ठ व्याख्याता शासकीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय क्रमांक २ निवाड़ी
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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