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हड़ताल

परमानंद सिवना “परमा”
बलौद (
छत्तीसगढ)
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छत्तीसगढ़ी कविता

रही-रही के हड़ताल करें,
लइका के भविष्य ला खराब करे,
अब तो हड़ताल कराईय खेलवना होगे,
लइका के जिनगी नदिया बइला होगेहे.!

अपन लइका ला प्रावेट स्कूल मा पढ़ाथे,
नौकरी सरकारी मा लगाते,
गरीब के लइका सरकारी स्कूल मा
पढ़ें जिहा शिक्षक हड़ताल करें.!

हड़ताल करना कोई गुनाह नो हरे
अपन हक बर लडे के एक तरीका हरे,
लेकिन जरुरत ले ज्यादा हड़ताल
लइका के जीवन ला बेकार करें.!

जतना तुहर एक महीना के वेतन हे,
उतका तो किसान के कमाई नई हे.!
तिहा ले किसान उतना
मा ही जीवन यापन करे.!

वहीं हड़ताल सैनिक करही ता
दुश्मन देश मा घुस जही,
विघार्थी ला सही राह देखातेव तुमन तो
हड़ताल ले फुर्सत नई मिलत हे.!!

परिचय :- परमानंद सिवना “परमा”
निवासी : मडियाकट्टा डौन्डी लोहारा जिला- बालोद (छत्तीसगढ़)
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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