Thursday, November 21राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर आपका स्वागत है... अभी सम्पर्क करें ९८२७३६०३६०

श्रीकृष्ण एक… रुप अनेक…

राजकिशोर वाजपेयी “अभय”
ग्वालियर (मध्य प्रदेश)
********************

भादों मास के कृष्ण-पक्ष की अष्टमी तिथि को कंस के कारागार (मथुरा) में जन्मे देवकी और वसुदेव के आँठवे पुत्र कृष्ण सनातनी परम्परा में बिष्णु के अवतार हैं, जो अपनी गीता में की गई घोषणा अनुसार संभवानि युगे-युगे के अनुरुप द्वापर युग के अंतिम काल में दुष्टों के संहार और धर्म की स्थापना हेतु अवतरित होते हैं।
जन्म लेते ही कंस से उनकी प्राण-रक्षा हेतु पिता वसुदेव मूसलाधार बरसात के बीच बाढ-ग्रस्त यमुना नदी में होकर अर्ध-रात्रि में ही उन्हें गोकुल में अपने मित्र नंद के पास पहुँचा देते हैं, जहां उनका पालन-पोषण नंद और यशोदा के द्वारा किया जाता है।
कृष्ण ही है जो भारतीय समाज की उत्सव-धर्मिता को वखूबी प्रकट कर, कहीं बाल रुप में लड्डू गोपाल है, कहीं विठ्ठल,कहीं रंगनाथ,कहीं जगन्नाथ, और कहीं बद्री विशाल और कहीं द्वारकाधीश से रुप में‌ भारतीय सांस्कृतिक एकता के सूत्रधार बने दिखते हैं।
कुशल बाल संगठन- कर्ता
बालक कृष्ण अपने बाल स्वरूप में‌ कान्हा के रूप में मनोहारी बाल-लीलाऐं करते दिखते हैं, परंतु यथार्थ में‌ बाल गोप गोपियों का संगठन कर उन्हें पर्यावरण संरक्षण बृंदा (तुलसी)-वन का विकास, नृत्य और वाद्य-यंत्र (मुरली) के साथ-साथ पशु-धन संरक्षण से जोड़, कंस के अत्याचारों के विरूद्ध जाग्रत करते हुये, बाल-पन में ही बालक शिशु हत्यारी पूतना का वध करते हैं। जल-प्रदूषण-कर्ता कालिया-नाग को क्षेत्र छोड़ने को विवश कर देते हैं। यमुना में नग्न-स्नान कर प्रदूषण परंपरा को रोकने हेतु गोपियों के बस्त्र चुरा,उन्हें समझानें का कार्य भी करते हैं। दुग्ध-क्रांति के आदि-जनक भी कृष्ण ही है जो शोषणकारी कंस व्यवस्था के प्रति बिद्रोह करते है और मथुरा जाने वाले दूध और मक्खन की आपूर्ति को बाधित करने में सहज नेतृत्व करते दिखते हैं। वे बालकों को स्वस्थ रखने और पौष्टिक भोज्य हेतु माखन चोर बनना, कहलाना भी स्वीकारते हैं।
सुख नहीं आनंद के अन्वेषक है श्रीकृष्ण: कृष्ण वासना नहीं प्रेम के पुजारी हैं, तन नहीं मन के स्वामी हैं, उनका रास प्रेम की पराकाष्ठा है,जहां वासना तिरोहित हो जाती है। सुख के स्थान पर आनंद की बर्षा होने लगती है। तभी तो अक्रूर का शुष्क ज्ञान गोपियों से पराजित होता दिखता है। नारी मुक्ति के प्रणेता वे तव दिखते हैं जब वलात कैद की गई सोलह हजार स्त्रियों को नरकासुर से मुक्त करा उन्हें सामाजिक मान्यता दिलाने हेतु उनका पति होना भी स्वीकारते हैं।
आदर्श मित्र, आदर्श प्रेमी सुदामा के साथ उनकी मित्रता आदर्श है, राधा कै साथ उनका प्रेम अद्भुत है जो लोक-स्वीकृत है।
अद्भुत शिष्य
विश्व काल गणना केन्द्र उज्जैन के संदीपनि आश्रम में पढ़ते हुये वे अल्पकाल में ही सब विद्यायें सीख गुरु दक्षिणा में अपने गुरु संदीपनि को उनके मृत मान लिये पुत्र को जीवित लाकर देते हैं।
अद्भुत मल्ल
कृष्ण मल्ल-विद्या विशारद हैं। वे कंस का वध उसके सिंहासन पर ही बिना किसी अस्त्र -शस्त्र के मात्र मुष्टिका प्रहार से ही कर देते हैं।
कुशल कूटनीतिज्ञ जरासंध के मथुरा आक्रमण के समय जन-हानि को बचाने हेतु वे युद्ध नहीं कर रणछोड़ कहलाने को भी स्वीकार करते हैं। महाभारत के होने वाले युद्ध कृष्ण कौरवों की सभा में पांडवों के दूत बन कर संधि-प्रस्ताव लेकर जाते है। पाड्वों के द्वारा राजसूय यज्ञ करा भारत की केन्द्रीय राजसत्ता की स्थापना कराते हैं।
कर्म-योग के प्रतिपादक और गीता के सर्जक
बिना आसक्ति के कर्म करना ही मुक्ति (आनंद) का सोपान है का महाघोष करने वाले श्रीकृष्ण युद्ध के मैदान में गीता का ज्ञान अर्जुन को देते हुये विश्व सुलभ कर देते हैं। धर्म और योग की सुंदर व्याख्या करते हुये वे धर्म की शाश्वत विजय की घोषणा कर मानव के जीवन के परम सत्य और लक्ष्य को भी स्पष्ट कर देते हैं।
श्रीकृष्ण सोलह कलाओं के साथ प्रकृति और धर्म रक्षक भी है। वे नगर निर्माण कर्ता है,पांडवों से खाण्डव-वन के स्थान पर इन्द्रप्रस्थ बनाते हैं तो स्वयं मथुरा के कंस को मार वहाँ के राजा नहीं बनते, बल्कि भारत की पश्चिमी सीमा पर मँडराते भविष्य के खतरों को भांप द्वारका नगरी की स्थापना कर उसे ही अपनी राजधानी बनाते हैं।
कृष्ण सिर पर मोर-पंख धारण कर मुरली बजाते पीताम्बरधारी है उनका यह स्वरूप लोक भुवन मोहक है। वे जन-मन के नायक हैं भारतीय परिवार और पर्यावरणीय धर्म के संरक्षक उन्नायक भी है। वर्तमान भारत को कृष्ण के दिखाये मार्ग को स्वीकारने की सामयिक आवश्यकता है और यही श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का सार्थक संदेश भी है।
यतों कृष्ण:ततो जय:
जय श्रीकृष्ण की।

परिचय :-  राज किशोर वाजपेयी “अभय”
निवासी
: ग्वालियर (मध्य प्रदेश)
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.com पर अणु डाक (मेल) कीजिये, अणु डाक करने के बाद हमे हमारे नंबर ९८२७३ ६०३६० पर सूचित अवश्य करें …🙏🏻

आपको यह रचना अच्छी लगे तो साझा अवश्य कीजिये और पढते रहे hindirakshak.com राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच से जुड़ने व कविताएं, कहानियां, लेख, आदि अपने चलभाष पर प्राप्त करने हेतु राष्ट्रीय  हिन्दी रक्षक मंच की इस लिंक को खोलें और लाइक करें 👉 👉 hindi rakshak manch  👈… राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच का सदस्य बनने हेतु अपने चलभाष पर पहले हमारा चलभाष क्रमांक ९८२७३ ६०३६० सुरक्षित कर लें फिर उस पर अपना नाम और कृपया मुझे जोड़ें लिखकर हमें भेजें…🙏🏻.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *