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हे! गिरिधर गोपाल

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे
मंडला, (मध्य प्रदेश)
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हे! गिरिधारी नंदलाल, तुम कलियुग में आ जाओ।
सत्य, न्याय रो रहे आज तो, नवजीवन दे जाओ।।

जीवन तो अभिशाप हो रहा,
बढ़ता नित संताप है।
अधरम का तो राज हो गया,
विहँस रहा अब पाप है।।
गायों, ग्वालों, नदियों, गिरि की, रौनक फिर लौटाओ।
सत्य, न्याय रो रहे आज तो, नवजीवन दे जाओ।।

अंधकार की बन आई है,
है अंधों की महफिल।
फेंक रहा नित शकुनि पाँसे,
व्याकुल है अब हर पल।।
अर्जुन सहमा-डरा हुआ है, बंशी मधुर बजाओ।
सत्य,न्याय रो रहे आज तो, नवजीवन दे जाओ।।

मानव अपने पथ से भटका,
कंस अनेकों दिखते।
नाग कालिया जाने कितने,
जो सबको हैं डँसते।
ज़हर मारकर सुधा बाँट दो, चमत्कार दिखलाओ।
सत्य,न्याय रो रहे आज तो, नवजीवन दे जाओ।।

परिचय :- प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे
जन्म : २५-०९-१९६१
निवासी : मंडला, (मध्य प्रदेश)
शिक्षा : एम.ए (इतिहास) (मेरिट होल्डर), एल.एल.बी, पी-एच.डी. (इतिहास)
सम्प्रति : प्राध्यापक व विभागाध्यक्ष इतिहास/प्रभारी प्राचार्य शासकीय जेएमसी महिला महाविद्यालय
प्रकाशित रचनाएं व गतिविधियां : पांच हज़ार से अधिक फुचकर रचनाएं प्रकाशित
प्रसारण : रेडियो, भोपाल दूरदर्शन, ज़ी-स्माइल, ज़ी टी.वी., स्टार टी.वी., ई.टी.वी., सब-टी.वी., साधना चैनल से प्रसारण।
संपादन : ९ कृतियों व ८ पत्रिकाओं/विशेषांकों का सम्पादन। एम.ए.इतिहास की पुस्तकों का लेखन
सम्मान/अलंकरण/ प्रशस्ति पत्र : देश के लगभग सभी राज्यों में ७०० से अधिक सारस्वत सम्मान/ अवार्ड/ अभिनंदन। म.प्र.साहित्य अकादमी का अखिल भारतीय माखनलाल चतुर्वेदी अवार्ड (५१०००/ रु.)
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।

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