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शिव स्तुति

उषाकिरण निर्मलकर
करेली, धमतरी (छत्तीसगढ़)

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हे! मोक्षरूप, हे! वेदस्वरूप, हे! व्यापक ब्रम्ह जगदव्यापी ।
हे! नीलकंठ, हे! आशुतोष, तुम अजर अमर हो अविनाशी ।
हे! शशिशेखर, हे! सदाशिव, तुम व्योमकेश तुम कैलाशी,
कृपा करो प्रभु कृपा करो, अब विघ्न हरो घट घट वासी ।

हे! शूलपाणि, हे! विरुपाक्ष, हे! वीरभद्र, हे! खटवांगी ।
हे! मृगपाणि, तुम सहस्राक्ष, हो सहस्रपाद हे! कालांगी ।
हे! शिवाप्रिय, हे! ललाटाक्ष, माँ शैलसुता है वामांगी ,
हे! भूतनाथ, तुम ही रुद्राक्ष, तुम पंचभूतों के हो संगी ।

हे! भुजंगभूषण, हे! मृत्युंजय, सच्चिदानंद, अंतर्यामी ।
देवों के देव, हे! महादेव, मैं याचक हूँ, तुम हो स्वामी ।
हे! अलखनिरंजन, हे! दुखभंजन, तुम करुणा के सागर हो,
काम हरो अब नाम करो प्रभु, तुम निष्काम, मैं हूँ कामी ।

हे! अमरनाथ, हे! रामेश्वर, हे! परमेश्वर, हे! सुखकारी ।
हे! वृषाङ्क, हे! वृषारूढ़, विष्णुवल्लभ, हे! शुभकारी ।
सोमसूर्याग्निलोचन, हे! गंगाधर, हे! जटाधारी,
हे! मर्मज्ञ, तुम हो सर्वज्ञ, तुम त्रिपुरान्तक, हे! त्रिपुरारी ।

हे! गिरीश, हे! गिरिधन्वा, हे! गिरिप्रिय, तुम ही गणनाथ ।
हे! नीललोहित, हे! त्रिलोकेश, तुम पिनाकी अम्बिकानाथ ।
हे! हिरण्यरेता, परशुहस्त, चारुविक्रम तुम वैधनाथ,
नाथों के नाथ, हे! विश्वनाथ, तेरे द्वार पड़ा कर दो सनाथ ।

महासेनजनक, दक्षाध्वरहर, हे! शिवशम्भु, तुम हो व्यापी ।
ओम नमः शिवाय नमों हर-हर, तुम महातपस्वी हो तापी ।
हे! महेश्वर, तुम सुरेश्वर, तुम ही पापविमोचन हो ,
पाप हरो अब पुण्य धरो प्रभु, तुम पुण्यात्मा, मैं हूँ पापी ।

हे! कपर्दी, हे! भीम, भव, कवची, कठोर हे! कामारी ।
हे! बाघाम्बर, हे! श्वेताम्बर, तुम हो मुंडमाला धारी ।
हे! त्रयम्बकेश्वर, त्रिगुणस्वामी, हे! भोले तेरी छवि न्यारी,
संताप हरो उपकार करो, हे! भवभंजन, हे! उपकारी ।

हे! कालकाल, तुम महाकाल, हे! महाशक्ति तुम संहारक ।
अंधकारसूदन तुम हे! शंकर, हे! पाशविमोचन तुम तारक ।
हे! दयानिधान, हे! कृपासिंधु, भक्तवत्सल तुम हो दाता ,
क्षमा करो प्रभु क्षमाशील, तुम परमपिता, मैं हूँ बालक ।

हे! एकानन, हे! चतुरानन, तुम पंचानन आकार धरो ।
प्रारब्ध मेरा है निराकार, तुम हे! शाश्वत, साकार करो ।
शीश नवाऊँ चरणों में प्रभु, नमन मेरा स्वीकार करो,
तुम आदिअंत, तुम ही अनंत, प्रभु अब मेरा उद्धार करो ।

हे! मोक्षरूप, हे! वेदस्वरूप, हे! व्यापक ब्रम्ह जगदव्यापी ।
हे! नीलकंठ, हे! आशुतोष, तुम अजर अमर हो अविनाशी ।
हे! शशिशेखर, हे! सदाशिव, तुम व्योमकेश, तुम कैलाशी,
कृपा करो प्रभु कृपा करो अब विघ्न हरो घट-घट वासी ।

परिचय :- उषाकिरण निर्मलकर
निवासी : करेली जिला- धमतरी (छत्तीसगढ़)
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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